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________________ १५७ भुजगारबंधे णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमो सुक्कले. सत्तएणं क० भुज०-अप्पद०-अवटि ओघं । अवत्तव्व० णत्थि अंतरं । आयु० देवोघं। २६४. उवसमस० सत्तएणं क० भुज०-अप्पद०-अवहि० ओघं । अवत्त० पत्थि अंतरं । सासणे सत्तएणं क० णिरयभंगो । आयु० दो वि पदाणत्थि अंतरं । एवं अंतरं समत्तं । णाणाजीवेहि भंगविचयाणुगमो २६५. पाणाजीवेहि भंगविचयाणु० दुवि०-अोघे० प्रादे । ओघे० सत्तएणं क. भुज-अप्पद०-अवहिबंधगा णियमा अत्थि । सिया एदे य अवत्तव्यबंधगो य, सिया एदे य अवत्तव्यबंधगा य । आयु० अवत्त० अप्पदरबंधगा य णियमा अस्थि । एवं अोघभंगो कायजोगि-ओरालियका०-अचक्खुदं०-भवसि-आहारग त्ति । २६६. आदेसेण णेरइएमु सत्तएणं क. अवट्टिबंध० णियमा अत्थि । सेसपदाणि भयणिज्जाणि । शानियोंके समान है। शुक्ललेश्यावाले जीवोंमें सात कर्मोंके भुजगार अल्पतर और अवस्थित बन्धका अन्तर ओघके समान है । प्रवक्तव्यबन्धका अन्तर नहीं है। आयुकर्मका भङ्ग सामान्य देवोंके समान है। २९४. उपशमसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सात कमौके भुजगार, अल्पतर और अवस्थितबन्धका अन्तर ओघके समान है। अवक्तव्य बन्धका अन्तर नहीं है। सासादनसम्यग्दृष्टि जीवोंमें सात कर्मोंके सब पदोंका अन्तर नारकियोंके समान है। आयुकर्मके दोनों ही पदोंका अन्तर नहीं है। इस प्रकार अन्तरानुगम समाप्त हुआ। नाना जीवोंकी अपेक्षा भङ्गविचयानुगम २९५. नानाजीवोंका अवलम्बन कर भङ्गविचयानुगमकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और आदेश । ओघसे सात कौंका भुजगार अल्पतर और अवस्थित बन्ध करने. वाले जीव नियमसे हैं। कदाचित् ये है और प्रवक्तव्यबन्ध करनेवाला एक जीव है। कदाचित् ये हैं और अवक्तव्य बन्ध करनेवाले अनेक जीव हैं। आयुकर्मका प्रवक्तव्य और स्पतर बन्ध करनेवाले जीव नियमसे है। इस प्रकार प्रोघके समान काययोगी, औदारिक काययोगी, अचक्षुदर्शनी, भव्य और आहारक जीवोंके जानना चाहिए। विशेषार्थ-यहाँ नाना जीवोंकी अपेक्षा भुजगारबन्ध आदिके भङ्ग लाये गये हैं। प्रोघसे सात कौका भुजगार, अल्पतर और अवस्थित बन्ध करनेवाले जीव नियमसे हैं । यह एक ध्रुव भङ्ग है । तथा ये और कदाचित् अवक्तव्य बन्ध करनेवाला एक जीव है अथवा ये और कदाचित् अवक्तव्य भङ्गवाले नाना जीव हैं। इस प्रकार ये दो अध्रुव भङ्ग है । कुल भङ्ग तोन होते हैं। आयुकर्मकी अपेक्षा प्रवक्तव्य और अल्पतरबन्धवाले जीव नियमसे हैं,यही एक ध्रुव भङ्ग होता है। यहां काययोगी आदि जो मार्गणाएँ गिनाई हैं, उनमें यह व्यवस्था अविकल घटित हो जाती है, इसलिए उनका कथन श्रोधके समान कहा है। २९६. आदेशसे नारिकयोंमें सात कर्मीका अवस्थित बन्ध करनेवाले जीव नियमसे हैं । तथा शेष पद भजनीय हैं । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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