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________________ ११४ महाबंधे द्विदिबंधाहियारे सव्वद्धा । आयु० उक० नह० एग०, उक्क० आवलि० असंखे० । अणु० सव्वद्धा । १६२. वेडव्वियमि० सत्तरणं कम्मारणं उक्क० अणु० हिदिबं० कालो जह० तो०, उक्क० पलिदो० श्रसंखे० । आहारका० सत्तरणं क० उक्क० अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो० । आयु० उक्क० जह० एग०, उक्क० संखेज्जसमया । ऋणु० जह० एग०, उक्क० अंतो० । आहारमि० सत्तणं क उक्क० अणु० जह० उक्क० अंतो० । आयु० उक्क० अणु० जह० एग०, उक्क० संखेज्जसम० अंतो० । श्रवगद के सुहुम ० ० सत्तणं क० छणं क० उक्क० अणु० जह० एग०, उक्क० अंतो० ! १६३. आभि० - सुद० - श्रधि० सत्तणं क० उक्क० जह० अंतो०, उक्क० पलिदो ० असंखे ० । अणु० सव्वद्धा । आयु० उक्क० जह० एग०, उक्क० संखेज्ज० । youtयभंग | एवं अधिदं ० सम्मादि ० वेदग० । १६४. मणपज्ज० सत्तण्णं क० उक्क० जह० टक्क० अंतो० । अणु० सव्वद्धा । आयु० मसिभंगो। एवं संजद - सामाइ० - छेदो० - परिहार० । संजदासंजदा० ह करनेवाले जीवोंका काल एक समय है और उत्कृष्ट काल आवलिके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका सब काल है । १९२. वैक्रियिकमिश्रकाययोगवाले जीवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट काल पल्यके श्रसंख्यातवें भाग प्रमाण है । श्राहारककाययोगवाले जोवों में सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। श्रायुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । आहारकमिश्रकाययोगवाले जीवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । श्रयुकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल क्रमसे संख्ात समय और अन्तर्मुहूर्त है । अपगतवेदवाले और सूक्ष्मसाम्परायसंयत जीवों में क्रमसे सात और छह कर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है । ० १९३. आभिनिबोधिकशानी, श्रुतज्ञानी और अवधिज्ञानी जीवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका काल सर्वदा है । आयुकर्म की उत्कृष्टस्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है । तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका काल नारकियोंके समान है। इसी प्रकार अवधिदर्शनी, सम्यग्दृष्टि और वेदकसम्यग्दृष्टि जीवोंमें काल जानना चाहिए। १९४. मन:पर्ययज्ञानवाले जीवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल श्रन्तर्मुहूर्त है । अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवका काल सर्वदा है। श्रायुकर्मका भंग मनुष्यिनियोंके समान है। इसी प्रकार संयत, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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