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________________ ११२ महाबंधे टिदिबंधाहियारे वेउव्विय०-इत्थि०-पुरिस-विभंग०-चक्खुदं०-तेउ०-पम्म०-सणिण त्ति । णवरि पंचमण-पंचवचि०-वेउव्वियका० आयु० अणु० जह० एग० । १८६. मणुसेसु सत्तएणं क. उक्क० जह० एग०, उक्क० अंतो० । अणु० सव्वद्धा । आयु० उक्क० जह० एग०, उक० संखेजसम० । अणु० णिरयभंगो । मणुसपज्जत्त-मणुसिणीसु सत्तएणं क. मणुसोघं। आयु० उक्क० जह० एग०, उक्क० संखेजसम० । अणु० जह० उक्क • अंतो० । एवं सव्वहे। मणुसअपज्ज. सत्तएणं क० उक्क० अणु० जह. एग०, उक्क० पलिदो० असंखे०। आयु० णिरयभंगो। शरीर पर्याप्त, पाँचों मनोयोगी, पाँचों वचनयोगी, वैक्रियिक काययोगी, स्त्रीवेदी, पुरुषवेदी, विभंगशानी, चक्षुदर्शनी, पीतलेश्यावाले, पद्मलेश्यावाले और संक्षी जीवों में स्पर्शन जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि पाँच मनोयोगी, पाँच वचनयोगो और वैक्रियिककाययोगी जीवोंमें आयुकर्मकी अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है। विशेषार्थ-नरकमें सब जीवराशि असंख्यात है और आयुकर्मका बन्ध प्रत्येक जीवके अन्य कर्मके समान सर्वदा होता नहीं, इस लिए वहाँ आयुकर्मको अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका सर्वदा काल न होकर वह जघन्य अन्तर्मुहूर्त और उत्कृष्ट पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण होता है,ऐसा यहाँ समझना चाहिए । तथा पाँच मनोयोग, पाँच वचनयोग और वैक्रियिककाययोग इनमेंसे प्रत्येक योगका जघन्य काल एक समय होनेसे इन योगोंमें आयुकर्मकी अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय बन जाता है। शेष कथन सुगम है। १८९. मनुष्यों में सात कौकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका सब काल है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका काल नारकियोंके समान है। मनुष्य पर्याप्त और मनुष्यिनियोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका काल सामान्य मनुष्योंके समान है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल संख्यात समय है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य और उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। इसी प्रकार सर्वार्थसिद्धि में जानना चाहिए । मनुष्य अपर्याप्तकोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय है और उत्कृष्ट काल पल्यके असंख्यातवें भागप्रमाण है । आयुकर्मका भङ्ग नारकियोंके समान है। विशेषार्थ-मनुष्यों में सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका वन्ध पर्याप्त अवस्थाके होने पर ही होता है और पर्याप्त मनुष्य संख्यात है। यही कारण है कि मनुष्योंमें सात कौकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका जघन्य काल एक समय और उत्कृष्ट काल अन्तमुहूर्त कहा है। सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध कमसे कम एक समय तक होता है, इसलिए जघन्य काल एक समय कहा है तथा एक जीवकी अपेक्षा उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त है। अब मान लो संख्यात मनुष्य एकके बाद एक उत्कृष्ट स्थितिबन्धका प्रारम्भ के उस सब कालका जोड़ अन्तर्मुहर्त ही होगा। इसलिए उत्कृष्ट काल अन्तर्मुहूर्त कहा है। यतः Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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