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________________ उक्कस्सफोसणपरूवणा जह० अजह० सव्वलो० । बादरपुढवि०-आउ०-तेउ० तेसिं च अपज्जत्ता० बादरवणप्फदि-णिगोदपज्जत्तापज्ज० बादरवणप्फदिपत्तेय० तस्सेव अपज्जत्त० सत्तएणं क० ओघं । आयु० णिरयभंगो। बादरपुढवि०-आउ०-तेउ०-पज्जत्ता० बादरवणप्फ०पत्तेयपज्जत्ता०अहएणं कम्माणं उक्करसभंगो। बादरवाउ०अपज्जत्ता. सत्तएणं क. तिरिक्खोघं । आयु. जह० अज० लोग० संखेज्ज । बादरवाउ०पज्जत्त० अहएणं क० जह, अजह० लोग० संखेज्ज० । सेसाणं सव्वेसिं सव्वे भंगा। एवं खेत्तं समत्तं । फोसणपरूवणा १७०. फोसणं दुविधं-जहएणयं उक्कस्सयं च । उक्कस्सए पगदं। दुविधंओघेण आदेसेण य। तत्थ ओघेण सत्तएणं कम्माणं उक्कस्सहिदिबंधगेहि केविडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखे० अह-तेरह चोदसभागा । अणुक्क० बंधः सव्वलो । आयु० उक्क० अणु० खेत्तभंगो। एवं श्रोधभंगो कायजोगि०-कोधादि०४-मदि०-सुद०-असंज०अचक्खुदं०-भवसि०-अब्भवसि०-मिच्छादि-आहारग त्ति । आठ कर्मोंकी जघन्य और अजधन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। बादर पृथ्वीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक और इनके अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक, बादर निगोद और इनके पर्याप्त तथा अपर्याप्त, बादर वनस्पतिकायिक प्रत्येक शरीर तथा इनके अपर्याप्त जीवों में सात कर्मोकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र ओघके समान है। आयुकर्मकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र नारकियोंके समान है। बादर पृथ्वीकायिक, पर्याप्त, बादर जलकायिक पर्याप्त, बादर अग्निकायिक पर्याप्त और बादर वनस्पति प्रत्येक शरीर पर्याप्त जीवोंमें आठ कर्मोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र उत्कृष्टके समान है। बादर वायुकायिक अपर्याप्त जीवोंमें सात कर्मोकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र सामान्य तिर्योके समान है। आयकर्मकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है। बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवों में पाठ कर्मोंकी जघन्य और अजघन्य स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है । शेष सब मार्गणाओं में सब भङ्ग होते हैं। इस प्रकार क्षेत्र समाप्त हुआ। स्पर्शनप्ररूपणा १७०. स्पर्शन दो प्रकारका है-जघन्य और उत्कृष्ट । उत्कृष्टका प्रकरण है। उसकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है-श्रोध और श्रादेश। उनमेंसे ओघकी अपेक्षा सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने कितने क्षेत्रका स्पर्शन किया है ? लोकके असंख्यातवें भाग, कुछ कम पाठबटे चौदह राजू और कुछ कम तेरह बटे चौदह राजू' क्षेत्रका स्पर्शन किया है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंने सब लोकका स्पर्शन किया है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका स्पर्शन क्षेत्रके समान है। इस प्रकार ओघके समान काययोगी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताहानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, भव्य, अभव्य, मिथ्यादृष्टि और आहारक मार्गणाओं में स्पर्शन जानना चाहिए । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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