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________________ महाबंधे टिदिबंधाहियारे १६४. वाउ० सत्तएणं क. उक्क बं० केव० ? लोग संखेज्जदिभागे । अणु० सव्वलो० । आयु० अोघं । बादरवाउ० सत्तएणं क० उक्क० लोग० संखेज्ज । अणु० सव्वलो । आयु० उक्त लोग० असं० । अणु'० लोगस्स० संखेज । बादरवाउपज्जत्ता सत्तएणं क० उक्क० अणु० लोग० संखेज्ज । आयु० उक्क लोग० असं० । अणु० लोग० संखेज्ज.। बादरवाउअपज्ज सत्तएणं क० उक्क० अणु० सन्चलोगे। आयु० उक्क० लोग० असंखे० । अणु० लोग० संखेज्जदि० । सुहुमवाउपज्जत्तापज्जत्त० सत्तएणं क० उक्क० अणु० सव्वलोगे। आयु० अोघं । तथापि इनमें सात कर्मीकी अपेक्षा उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र एकेन्द्रियोंके समान प्राप्त होता है, इसलिए इस क्षेत्रको एकेन्द्रियोंके समान कहा है। पर इनका स्वस्थान क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है, इसलिए इनमें, श्रायुकर्मको उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण कहा है। १६४. वायुकायिक जीवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र कितना है ? लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र ओघके समान है। बादर वायुकायिक जीवोंमें सात कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है। बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंमें सात कर्मोकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है। आयकर्मको उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है। बादरवायुकायिक अपर्याप्त जीवोंमें सात कौंको उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र लोकके संख्यातवें भागप्रमाण है । सूक्ष्म वायुकायिक और इनके पर्याप्त तथा अपर्याप्त जीवों में सात कर्मोंकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र सब लोक है। आयुकर्मकी उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र श्रोधके समान है। विशेषार्थ-बादरवायुकायिक और उनमें अपर्याप्त जीवोंका स्वस्थान क्षेत्र लोकका संख्यातवां भागप्रमाण तथा मारणान्तिक समुद्धात और उपपाद पदकी अपेक्षा सर्वलोक क्षेत्र है । बादर वायुकायिक पर्याप्त जीवोंका स्वस्थान समुद्धात और उपपादपदकी अपेक्षा लोकका असंख्यातवां भागप्रमाण क्षेत्र है। इसी विशेषताको ध्यानमें रख कर इन जीवोंमें सात कमौके व आयुकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट क्षेत्र का विचार कर लेना चाहिए । मात्र आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंका क्षेत्र सर्वत्र लोकके असंख्यातवें भागप्रमाण है यह स्पष्ट ही है। शेष कथन सुगम है। १. मूलप्रती अणु० उक० संखेज. इति पाठः । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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