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महाबधे ट्ठिदिबंधाहियारे
या हिदी बंधा । एवं पगदिं बंधति तेसु पगदं, अबंधगेसु' अव्ववहारो । एदेण पण दुविधो दिसो - ओण आदेसेण य तत्थ घेणं कम्मारणं उक्कस्सियाए द्विदीए सिया सन्वे अबंधगा, सिया अबंधगा य बंधगो य, सिया गाय बंधा य । एवं अणुक्कस्से वि । एवरि पडिलोमं भारिणदव्वं । एवमोघभंगो तिरिक्खोघं कायजोगि ओरालियकाय ० -ओरालियमि० - कम्मइ० - एसय० - कोधादि०४-मदि० -सुद० - असंजद ० चक्खु०-किरण० -पीलले ० - काउ०- भवसि ० - अब्भवसि० - मिच्छादि० - सरिण - आहार० - अरणाहारग त्ति । गवरि कम्मइ० - अरणाहार० सत्तri कम्माणं भाणिदव्वं ।
स्थितिके बन्धक जीव होते हैं, वे उसकी उत्कृष्ट स्थितिके श्रबन्धक होते हैं । इस प्रकार जो जीव प्रकृतिका बन्ध करते हैं, उनका यहां प्रकरण है । अबन्धकोंका प्रकरण नहीं है । इस
पदकी अपेक्षा निर्देश दो प्रकारका है - श्रोध और आदेश । उनमेंसे श्रोधकी अपेक्षा आठ कर्मोंकी उत्कृष्ट स्थितिके कदाचित् सब जीव प्रबन्धक हैं, कदाचित् बहुत जीव अबन्धक हैं और एक जीव बन्धक है तथा कदाचित् बहुत जीव प्रबन्धक हैं और बहुत जीव बन्धक हैं । इसी प्रकार अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धमें भी कथन करना चाहिए। इतनी विशेषता है कि वहां इससे प्रतिलोम रूपसे कथन करना चाहिए। इस प्रकार ओघके समान सामान्य तिर्यञ्च, काययोगी, औदारिक काययोगी, श्रदारिकमिश्रकाय योगी, कार्मणकाययोगी, नपुंसकवेदी, क्रोधादि चार कषायवाले, मत्यज्ञानी, श्रुताज्ञानी, असंयत, अचक्षुदर्शनी, कृष्णलेश्यावाले, नोललेश्यावाले, कापोतलेश्यावाले, भव्य, श्रभव्य, मिथ्यादृष्टि, असंशी, आहारक और अनाहारक जीवोंके जानना चाहिए । इतनी विशेषता है कि कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवोंमें सात कर्मोंका भङ्गविचय कहना चाहिए ।
विशेषार्थ - भङ्गविचय शब्दका अर्थ है-भेदोंका वर्गीकरण करना। यहां उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिका बन्ध करनेवाले जीवोंके प्रबन्धकोंके साथ किस प्रकार कितने भङ्ग होते हैं, यह बतलाया गया है । आठों कर्मोंकी श्रोध उत्कृष्ट स्थितिके बन्धक जीव कदाचित् एक भी नहीं होता, कदाचित् एक होता है और कदाचित् नाना होते हैं । तथा इसकी अनुत्कृष्ट स्थिति बन्धक जीव कदाचित् सब होते हैं. कदाचित् एक कम सब होते हैं और कदाचित् नाना होते हैं । इसलिए प्रबन्धकोंको मिलाकर इनके भङ्ग लानेपर इस प्रकार होते हैंकदाचित् ज्ञानावरणको उत्कृष्ट स्थितिके सब अबन्धक होते हैं, कदाचित् बहुत जोव प्रबन्धक होते हैं और एक जीव बन्धक होता है तथा कदाचित् बहुत जीव प्रबन्धक होते हैं और बहुत जीव बन्धक होते हैं । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धकी अपेक्षा कदाचित् सब जीव बन्धक होते हैं । कदाचित् बहुत जीव बन्धक होते हैं और एक जीव प्रबन्धक होता है तथा कदाचित् बहुत जीव बन्धक होते हैं और बहुत जीव प्रबन्धक होते हैं। यहां अन्य जितनी मार्गणाएँ गिनाई हैं, उनमें यह ओघ प्ररूपणा श्रविकल घटित हो जाती है; इसलिए उनके कथनको श्रधके समान कहा है । इतनी विशेषता है कि इन मार्गणाओंमें उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्ध जहां जो सम्भव हो, वह लेना चाहिए। मात्र कार्मणकाययोग और अनाहारक इन दो मार्गणाओं में श्रायुकर्मका बन्ध नहीं होता, इसलिए इनमें सात कर्मोकी अपेक्षा भङ्गविचय कहना चाहिए ।
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