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________________ ६४ महाबंधे हिदिबंधाहियारे उक्त हिदि० उक्कस्सं कम्महिदी। बादरवणप्फदि० अंगुलस्स असंखे । एदेसि पज्जत्ताणं संखेज्जाणि वस्ससहस्साणि । आयुग० उक्क हिदि० जह० भवहिदी समयू, उक्क० सगहिदी । सव्वसुहुमाणं सुहुमेइंदियभंगो । १०५.पंचमण-पंचवचि० सत्तएणं क उक्क रणत्थि अंतरं। अणु० जह• एग, उक्क अंतो० । आयुग० उक्क० अणु० पत्थि अंतरं । एवं वेउव्वियका-आहारकाकोधादि४ । कायजोगि-ओरालि एवं चेव । णवरि आयु० उक्क पत्थि अंतरं । अणु० जह• अंतो०, उक्क० बावीसं वस्ससहस्साणि सत्तवस्सहस्साणि सादिरे । ओरालियमि०-वेउब्वियमि-आहारमि०-कम्मइग-अणाहारगेसु सत्तएणं क० उक्क० कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तर अंगुलके असंख्यातवें भागप्रमाण है। तथा इनके पर्याप्तकों में सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तरकाल संख्यात हजार वर्ष है। आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय कम भवस्थितिप्रमाण है और उत्कृष्ट अन्तर अपनी स्थितिप्रमाण है। सब सूक्ष्मकायिकोंमें सूक्ष्म एकेन्द्रियोंके समान जोनना चाहिए। विशेषार्थ-पृथिवीकायिक, जलकायिक, अग्निकायिक और वायुकायिक जीवोंकी उत्कृष्ट कायस्थिति प्रत्येककी असंख्यात लोकप्रमाण है। तथा निगोद जीवोंकी उत्कृष्ट कायस्थिति ढाई पुद्गलपरिवर्तनप्रमाण है। बादर पृथिवीकायिक, बादर जलकायिक, बादर अग्निकायिक, बादर वायुकायिक, बादर वनस्पति प्रत्येकशरीर तथा बादर निगोद इनकी उत्कृष्ट कायस्थिति कर्मस्थितिप्रमाण है। तथा इन सब बादर पर्याप्तकोंकी उत्कृष्ट कायस्थिति संख्यात हजार वर्षप्रमाण है।' इतनी विशेषता है कि बादर निगोद पर्याप्तकों उत्कृष्ट कायस्थिति अन्तर्मुहूर्त प्रमाण है। इन सब सूक्ष्म जीवोंको उत्कृष्ट कायस्थिति असंख्यात लोकप्रमाण है और इनके पर्याप्तकोंकी अन्तर्मुहूर्तप्रमाण है। इस प्रकार इस कायस्थितिको ध्यानमें रखकर यहाँ आठों कर्मोके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका उत्कृष्ट अन्तरकाल ले आना चाहिए । शेष कथन सुगम है। १०५. पाँचों मनोयोगी और पाँचों वचनयोगी जीवोंमें सात कौके उत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तरकाल नहीं है। अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर एक समय है और उत्कृष्ट तर अन्तर्मुहूर्त है। श्रायुकर्मके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तरकाल नहीं है। इसी प्रकार वैक्रियिककाययोगी, आहारककायोगी और क्रोधादि चार कषायमें जानना चाहिए । काययोगी और औदारिककाययोगी जीवोंमें भी इसी प्रकार जानना चाहिए। किन्तु इतनी विशेषता है कि इनमें आयुकर्मके उत्कृष्ट स्थितिवन्धका अन्तरकाल नहीं है । अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका जघन्य अन्तर अन्तर्मुहूर्त है और उत्कृष्ट अन्तर क्रमसे साधिक बाईस हजार वर्ष और साधिक सात हजार वर्ष है। औदारिकमिश्रकाययोगी वैक्रियिकमिश्रकायोगी, श्राहारकमिश्रकोययोगी, कार्मणकाययोगी और अनाहारक जीवों में सात कोके उत्कृष्ट और अनुत्कृष्ट स्थितिबन्धका अन्तरकाल नहीं है । औदारिकमिश्रकाययोगमें आयुकर्मके उत्कृष्ट १.ध० पु०७,पृ. १४३ । २. ध० पु. ७,पृ० १४८।३.१० पु. ७,पृ. १४४ और १४९ । १.ध.पु. ७,पृ० १४६ । ५. ध० पु.७,पु. १४९ । ६.३० पु. ७,०१४७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001389
Book TitleMahabandho Part 2
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorFulchandra Jain Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages494
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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