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पयडिबंधाहियारो
३९१ बंधग० विसेसा० । णीचागोदस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा विसेसा० । एवं सव्व-अपज्जत्ताणं तसाणं सव्वएइंदि० सव्वविगलिंदि० सव्वपुढवि० - आउ० वणप्फदिणिगोदाणं च ।
३५७. देवेसु-भवणवासिय याव ईसाण ति पंचिंदिय-तिरिक्ख-अपज्जत्त-भंगो। सणक्कुमार याव सहस्सार ति णिरयभंगो। आणद याव उवरिमगेवज्जात्ति-आयुगवजाणं तेरसण्णं पगदीणं जहणिया बंधगद्धा सरिसा थोवा । आयु० जहणिया बंधगद्धा संखे० गुणा । उक्क० बंधग० संखे० गुणा । उच्चागो० उक.. बंधग० संखे० गुणा । पुरिसवे० उक्क० बंधग० संखे० गुणा । इथिवे. उक्क० बंधग० संखे० गुणा । साद० हस्स-रदि-जस० उक्कस्सिया बंधगद्धा विसेसा० । णसवे० उक्क० बंधग० संखे० गुणा । असाद-अरदि-सो० अज्ज० उक्क० बंधग० विसेसा० । णीचागो० उक्क० बंधग० संखे० गुणा । अणुदिस याव सव्वदृत्ति-आयुगवजाणं अट्ठण्णं पगदीणं जहणिया बंधगद्धा सरिसा थोवा । आयुग० जह० बंधगद्धा संखेज्जगुणा । उक्क० बंधग० संखे० गुणा । साद-हस्सरदि-जस० उक्क० बंधग० संखे० गुणा । असादअरदि-सो० अजस० उक्क० बंधगद्धा संखे० गुणा । विशेषाधिक है। तिर्यंचगति के बन्धकोंका उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है। नीच गोत्रके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है।
सर्व अपर्याप्तक त्रसों, सर्व एकेन्द्रिय, सर्व विकलेन्द्रिय, सर्व पृथ्वीकाय-अप्काय तथा वनस्पतिनिगोदोंका इसी प्रकार भंग जानना चाहिए।
____३५७. देवोंमें-भवनवासियोंसे ईशान पर्यन्त पंचेन्द्रिय-तिर्यच अपर्याप्तकों के समान भंग है । सनत्कुमारसे सहस्रारपर्यन्त नरकगतिके समान भंग है। आनतसे उपरिम ग्रैवेयक पर्यन्त आयुको छोड़कर १३ प्रकृतियोंके बन्धकोंका जघन्य काल समान रूपसे स्तोक है।
विशेष-आनतादि स्वर्गों में केवल मनुष्यगतिका बन्ध होता है। अतः परिवर्तमान १७ प्रकृतियों में-से गतिचतुष्क घटा ली गयीं । इस प्रकार १३ प्रकृतियाँ शेष रहों।
___ मनुष्यायुके बन्धकोंका जघन्य काल संख्यातगुणा है। उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । उच्चगोत्रके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। पुरुषवेदके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यात गुणा है । स्त्रीवेदके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । साता, हास्य, रति, यशःकीर्तिके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है। नपुंसकवेदके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। असाता, अरति, शोक, अयशःकीर्त्तिके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है। नीचगोत्रके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है ।
अनुदिशसे सर्वार्थसिद्धि पर्यन्त आयुको छोड़कर आठ प्रकृतियोंके बन्धकोंका जघन्य काल समान रूपसे स्तोक है ।
विशेष-अनुदिशादि स्वर्गों में सम्यग्दृष्टि जीव ही होते हैं। उनके नीच गोत्र, स्त्रीवेद तथा नपुंसकवेदका बन्ध नहीं होता है। अतः गोत्रद्वय तथा तीन वेदनिमित्तक परिवर्तन न होनेसे आनतादिकी १३ प्रकृतियोंमें-से ५ प्रकृतियाँ घटानेपर ८ प्रकृतियाँ शेष रहती हैं।
मनुष्यायुके बन्धकोंका जघन्य काल संख्यातगुणा है। उत्कृष्ट काल संख्यातंगुणा है। साता, हास्य, रति, यश-कीर्ति के बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । असाता, अरति, शोक, अयश-कीर्तिके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है।
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