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________________ ३६० महाबंधे गुणा । उक्कस्सिया बंधगद्धा संखेजगुणा । पुरिसवेदस्स उक्कस्सिया बंधगद्धा संखेजगुगा। इत्थिवेदस्स उक्कस्सि० बंधगद्धा संखेज्जगुणा। साद-हस्स-रदि-जस० उक्कस्सिया बंधगद्धा विसेसा० । णवूसगवेदस्स उक्कस्सि० बंधगद्धा संखेज्जगुणा | असाद-अरदि-सोगअज्जस० उक्कस्सिया बंधगद्धा विसेसा०। पंचिंदिय-तिरिक्ख-अपज्जत्तेसु-आयुगवजाणं पण्णारसण्णं पगदीणं जहणिया बंधगद्धा सरिसा थोवा । दोण्णं आयुगाणं जहणिया बंधगद्धा सरिसा संखेजगुणा। उक्कस्सि० बंधगद्धा सरिसा संखे० गुणा। उच्चागोदस्स उक्कस्सि० बंधगद्धा संखे० गुणा | मणुस० उक्कस्सि० बंधग० संखे० गुणा । पुरिसवे. उकस्सि० बंधग० संखे० गुणा । इथिवे. उक्कस्सि० बंधग० संखे० गुणा। साद-हस्स-रदि-जस० उक्कस्सि० बंधगद्धा संखे० गुणा। असाद-अरदि-सोग. अज० उक्कस्सि. बंधगद्धा संखे० गुणा । णqसगवे. उक्कस्सि० बंधग० विसेसा० । तिरिक्खग० उक्कस्सिया है; मिथ्यात्व, सासादनमें नहीं होता। प्रथम, द्वितीय' गुणस्थानमें ही तिर्यंचगति तथा नीच गोत्र का बन्ध होता है। इस प्रकार ये चार प्रकृतियाँ परिवर्तमान नहीं रहती हैं। कारण, प्रतिपक्षी प्रकृतियोंका अभाव हो जाता है। . तिथंचायुके बन्धकोंका जघन्य काल संख्यातगुणा है। उत्कृष्ट काल संख्यात गुणा है । पुरुषवेदके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। सीवेदके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । साता, हास्य, रति, यश-कीर्तिके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है। नपुंसकवेदके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगणा है। असाता. अरति, शोक, अयशाकीर्तिके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल विशेषाधिक है। पचेन्द्रिय-तिर्यंच-अपर्याप्तकोंमें-आयुको छोड़कर पन्द्रह प्रकृतियोंके बन्धकोंका जघन्यकाल समान रूपसे स्तोक है। विशेष-पंचेन्द्रिय-तिर्यंच लब्ध्यपर्याप्तकों में नरकगति तथा देवगतिका बन्ध नहीं होता है। इस कारण आयुको छोड़कर शेष बची १७ प्रकृतियोंमें से दो घटानेपर पन्द्रह प्रकृतियाँ रह जाती हैं। मनुष्य-ति यंचायुके बन्धकोंका जघन्य काल समान रूपसे संख्यातगुणा है। दोनों आयुओंके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। उचगोत्रके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। मनुष्यगति के बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । पुरुषवेदके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । स्त्रीवेदके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है । साता, हास्य, रति, यश कीर्तिके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगणा है। असाता, अरति, शोक, अयशःकीर्ति के बन्धकोंका उत्कृष्ट काल संख्यातगुणा है। नपुंसकवेदके बन्धकोंका उत्कृष्ट काल १. "मिस्साविरदे उच्च मणुवदुगं सत्तमे हवे बंधो । मिच्छा सासणसम्मा मणुवदुगुच्चं ण बंधंति ॥"-गो० क०,१०७ । २. “सामण्ण-तिरियपंचिदियपुण्णगजोणिणीसु एमेव । सुरणिरयाउ अपुण्णे वेगुम्वियछक्कमवि गत्थि ॥"-गो० क०,१०६ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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