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महाबंधे
एवं पुढविकाइय-आउकाइय-तेउकाइय-वाउकाइय-णिगोदाणं । णवरि तेउ-बाऊणं मणुसगदितियं णत्थि । वणफदि-काइय-छण्णं जीवसमासाणं । बादर-वणफदि-पत्तेय० दोणं जीवसमासाणं। विकलिंदि० दोण्णं जीवसमासाणं । पज्जत्तापज्जत्ताणं एक्कं चेव जीवसमासा। पंचिंदिएसु चदुण्णं जीवसमासाणं । पज्जत्ते दोणं जीवसमासाणं । अपज्जत्ते दोण्णं जीवसमासाणं । तसेसु-दस-जीवसमासाणं पज्जत्तापज्जत्ताणं पंच जीवसमासाणं ।
__ ३५३. पंचमण० पंचवचि० वेउब्विय० वेउव्वियमिस्सका० [आहार] आहारमिस्सका० कम्मइग० अवगद० कोधादि०४ सुहुमसांपराय-सासणसम्माइट्ठि-सम्मामिच्छाइट्टि-अणाहारगत्ति णत्थि अप्पाबहुगं। काजोगीसु-वेउब्धियछकं वज्ज सेसाणं
ओघभंगो कादव्यो। एवं ओरालिय-काजोगि-ओरालियमिस्स-काजोगीसु । णवरि सत्तण्णं जीवसमासाणं ति भाणिदव्यं । इस्थिवेद-पुरिसवेदेसु-चदुण्णं जीवसमासात्ति
पृथ्वीकायिक, अप्कायिक, तेजकायिक, वायुकायिक तथा निगोदियोंमें इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष, तेजकायिक, वायुकायिकमें मनुष्यगति, मनुष्य-गत्यानुपूर्वी तथा उच्चगोत्रका बन्ध नहीं होता है । वनस्पति कायिकमें साधारण तथा प्रत्येक ये दो भेद हैं । इनमें से प्रत्येकके पर्याप्त तथा अपर्याप्त ये दो भेद हैं। साधारणके बादर तथा सूक्ष्म ये दो भेद हैं । बादर के पर्याप्त तथा अपर्याप्त और सूक्ष्म के भी पर्याप्त तथा अपर्याप्त इस प्रकार वनस्पतिकायिकमें ६ जीव-समास हैं। बादर-वनस्पति प्रत्येकके पर्याप्तक, अपर्याप्तक ये दो जीवसमास हैं। विकलेन्द्रियके पर्याप्तक, अपर्याप्तक ये दो जीव-समास हैं। इनके पर्याप्तकों तथा अपर्याप्तकों में एक-एक जीव-समास हैं। पंचेन्द्रियों में चार जीव-समास हैं। पर्याप्तकों में संज्ञी और असंज्ञी ये दो जीव-समास हैं। अपर्याप्तकोंमें भी संज्ञी और असंज्ञी ये दो जीवसमास हैं।
__ सोंमें-दस जीव समास हैं, पर्याप्तकों में पाँच अर्थात् दोइन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, संज्ञी पंचेन्द्रिय ये पाँच हैं तथा अपर्याप्तकों में भी पाँच जीव समास हैं। इस प्रकार दोनों मिलकर दस जीव-समास होते हैं।
___३५३. ५ मनोयोगी, ५ वचनयोगी, वैक्रियिक, वैक्रियिक मिश्रकाययोगी, [ आहारक, ] आहारकमिश्रकाययोगी, कार्मण काययोगी, अपगतवेद, क्रोधादि ४ कषाय, सूक्ष्मसाम्पराय, सासादनसम्यक्त्वी, सम्यग्मिथ्यादृष्टि, अनाहारकमें अल्पबहुत्व नहीं है।
काययोगियों में बैंक्रियिकपटकको छोड़कर शेष प्रकृतियोंका ओघवत् भंग करना चाहिए। औदारिककाययोगी, औदारिकमिश्रकाययोगीमें-इसी प्रकार जानना चाहिए । विशेष, यहाँ सात जीव-समास करना चाहिए। अर्थात् औदारिककाययोगमें पर्याप्तकों के सूक्ष्म-बादर-एकेन्द्रिय, दोइन्द्रिय, त्रीन्द्रिय, चौइन्द्रिय, असंज्ञी पंचेन्द्रिय, संज्ञी पंचेन्द्रिय ये सात भेद हैं तथा औदारिक मिश्रमें अपर्याप्तकोंके भी ये सात जीव-समास हैं ।
स्त्रीवेदियों, पुरुपवेदियोंमें पर्याप्त, अपर्याप्त भेद युक्त संज्ञी तथा असंज्ञी पंचेन्द्रिय ये चार जीव-समास कहना चाहिए ।
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