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महाबंधे विसे० । साद-बंधगा जीवा विसेसा० । उवरि मणजोगिभंगो। असण्णी-मिच्छादिहि. भंगो। आहारा-ओघभंगो । अणाहारा-कम्मइगभंगो ।
एवं परत्थाण-जीव-अप्पाबहुगं समत्तं ।
बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। हास्य, रतिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। साता वेदनीयके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। आगेकी शेष प्रकृतियोंमें मनोयोगीके समान भंग हैं। असंज्ञीमें मिथ्यादृष्टिके समान भंग हैं।
आहारकमें - ओघके समान भंग हैं। अनाहारकोंमें - कार्मण काययोगीके समान भंग हैं।
इस प्रकार परस्थान जीव अल्प-बहुत्व समाप्त हुआ।
१. "सण्णियाणुवादेण सव्वत्थोवा सण्णी । णेवे सण्णी णेव असण्णी अणंतगुणा । असण्णी अणंतगुणा । -खु० ब०,अप्पाबहु सू० २००-२०२,पृ. ५७३
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