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महाघे
इत्थवे ० | धगा जीवा संखेज्ज० । जस० बंधगा जीवा संखेजगु० । हस्सरदिबंधगा जीवा संखेज ० | साद-बंधगा जीवा विसे० । असाद- अरदि-सो० बंधगा जीवा संखेज्ज० । अज बंधगा जीवा विसे० । णवंस० बंधगा जीवा विसेसा० । तिरिक्खगदि-बंधगा जीवा विसेसा० । णीचागो० बंधगा जीवा विसे० । मिच्छत्त० बंधगा जीवा विसेसा० । थी गिद्ध ३ अनंताणुबंधि०४ ओरालि० बंधगा जीवा विसेसा० । सेसाणं बंधगा सरिसा विसेसा० । वेउन्चिय-काजो०, वेउब्वियमि० देवोघं । णवरि मिस्से आयुगं
। आहार आहारमिस्स ० - सव्वत्थोवा तित्थयरबंधगा जीवा । देवायु-बंधगा जीवा संखेज्जगुणा | सादहस्स - रदि जसगित्ति -बंधगा जीवा संखेजगुणा । असाद-अरदिसोग - अजगत्तिधगा जीवा संखेजगुणा । सेसाणं बंधगा सरिसा विसेसाहिया । कम्मइका० सव्वत्थोवा देवग दि-वेउब्विय० बंधगा जीवा । उच्चागो० बंधगा जीवा अनंतगुणा | मणुसग० बंधगा जीवा संखे० गुणा । पुरिस० बंध० जीवा
वेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । स्त्रीवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । यशः कीर्त्ति के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । हास्य, रतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । साताके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । असाता, अरति, शोकके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । अयशःकीर्त्तिके बन्धक जीवाधिक हैं । नपुंसकवेदके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । तिर्यंचगति के बन्धक जीव विशेपाधिक हैं । नीच गोत्रके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मिथ्यात्व के बन्धक जीव विशेषाfur हैं | स्त्यानगृत्रिक, अनन्तानुबन्धी ४ तथा औदारिक शरीरके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। शेप प्रकृति के बन्धक जीवों में समान रूपसे विशेष अधिकका क्रम है ।
वैक्रियिककाययोगी, वैक्रियिक मिश्रकाययोगियों में देवोंके ओघवत् जानना चाहिए । विशेष, वैक्रियिकमिश्र काययोगमें आयुका बन्ध नहीं है ।
विशेषार्थं - वैक्रियिक मिश्रकाययोगमें नरकायु तथा देवायुका बन्ध निषिद्ध है, कारण देव तथा नारकी मरण कर देव तथा नारकी अवस्थाको नहीं बाँधते हैं । वैक्रियिक मिश्रकाययोग में "देवे वा वेगुवे मिस्से णरतिरियाउगं णत्थि " ( गो० क०, ११८ ) के नियमानुसार मनुध्यायु तथा तिर्यंचायुका भी बन्ध नहीं होता है। इससे यहाँ आयुबन्धका 'निषेध किया है ।
आहारक, आहारक मिश्रकाययोगियों में बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । साता, हास्य, रति, असाता, अरति, शोक, अयशःकीर्त्तिके बन्धक जीव जीव समान रूप से विशेषाधिक हैं ।
तीर्थंकर के बन्धक सर्वस्तोक हैं । देवायुके यशः कीर्त्तिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । संख्यातगुणे हैं। शेष प्रकृतियोंके बन्धक
विशेषार्थ - आहारक तथा आहारक मिश्रकाययोगियों में इतना अन्तर है कि आहारक काययोगीके देवायुका बन्ध होता है, किन्तु आहारक मिश्रकाययोगियों में देवायुका बन्ध नहीं होता । गोम्मटसार कर्मकाण्डमें लिखा है, "छट्टगुणं वाहारे तम्मिस्से णत्थि देवाऊ ।" ( गाथा ११८ ) ।
कार्मण काययोगियोंमें - देवगति, वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव सबसे स्तोक हैं । उच्च गोत्रके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। मनुष्यगतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । पुरुष
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