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________________ पयडिबंधाहियारो ओरालि० बंधगा जीवा विसेसा० । मिच्छत्त-बधगा जीवा विसेसा० । थीणगिद्धि-तियं अणंताणुबंधि०४ बंधगा जीवा विसेसा० । अपचक्खाणा०४ बंधगा जीवा विसेसा० । सेसाणं पगदीणं बंधगा जीवा सरिसा त्रिसेसाहिया। एवं पंचिंदिय-तिरिक्ख० । णवरि असंखेजगुणं कादव्वं । ३२६. पंचिंदिय-तिरिक्ख-पज्जत्त-जोणिणीसु-सव्वत्थोवा मणुसायुबंधगा जीवा। णिरयायु-बंधगा जीवा असंखेज्जगु० । देवायु-बंधगा जीवा असंखेज्ज। तिरिक्खायुबंधगा जीवा संखेज०। देवगदि-बंधगा जीवा संखेज०। उच्चागोद बंधगा जीवा संखेज०। मणुसगदि-बंधगा जीवा संखेज०। पुरिस० बंधगा जीवा संखेज। इत्थिवे. बंधगा जीवा संखेज । जस० बंधगा जीवा संखेजः । साद-हस्स-रदि-बंधगा जीवा संखेन्ज । तिरिक्खगदिबंधगा जीवा संखेज । ओरालि० बंधगा जीवा विसेसा० । णिरयगदि-बंधगा जीवा संखेजगुणा । वेउव्वि० बंधगा जीवा विसेसा० । असाद-अरदि-सोगबंधगा जीवा विसेसा० । अजस० बंधगा जीवा विसेसा० । णवंस.. बंधगा जीवा विसेसा० । णीचागो० बंधगा जी० विसेसा०। मिच्छत्त-बंधगा जीवा विसेसा० । थीणगिद्धितियं अणंताणुबंधि०४ बंधगा जीवा विसेसा० । अपच्चक्खाणा०४ बंधगा जीवा विसेसा० सेसाणं पगदीणं बंधगा सरिसा विसेसा०। पंचिंदियतिरिक्ख-अपजत्तगेसु-सव्वत्थोवा मणुसायु-बंधगा जीवा। तिरिक्खाय-बंधगा जीवा औदारिक शरीरके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मिथ्यात्वके बन्धक जीव विशेपाधिक हैं। स्त्यानगृद्धित्रिक, अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेपाधिक हैं। शेष प्रकृतियोंके बन्धक जीव समान रूपसे विशेषाधिक हैं। पंचेन्द्रिय तियचों में इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष, यहाँ असंख्यातगुणा क्रम करना चाहिए। ३२६. पंचेन्द्रिय-तिर्य च-पर्याप्त, पंचेन्द्रिय-तिर्यंच-योनिमतियों में - मनुष्यायुके बन्धक जीव सर्वम्तोक हैं । नरकायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। देवायुके बन्धक जीव असंख्यात. गुणे हैं । तियं चायुके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। देवगतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। उच्च गोत्रके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। मनुष्यगतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। पुरुषवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेदके वन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। यशाकीर्तिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। साता-वेदनीय, हास्य, रतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। तिर्य वगतिक बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। औदारिक शरीरके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। नरकगतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। असाता. अरति. शोकके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। अयशःकीर्तिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। नपुंसकवेदके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। नीच गोत्रके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मिथ्यात्वके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। स्त्यानगृद्धित्रिक, अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्ध : जीव विशेषाधिक हैं। शेष प्रकृतियों के बन्धक जीव समान रूपसे विशेषाधिक है। पंचेन्द्रिय तिथंच लब्ध्यपर्याप्तकोंमें मनुष्यायुके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। तियचायुके ४६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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