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________________ ३६० महाबंधे मव्वत्थोवा मणुसगदि-उच्चागो. बंधगा जीवा । तिरिक्खायु-बंधगा जीवा असंखेजगुणा । पुरिसवे० बंधगा जीवा असंखेज । इथि० बंधगा जीवा संखेजगुणा । उवरि सो चेव भंगो। णवरि मिच्छत्त-बंधगा जीवा विसेसा० । थीणगिद्वितियं अणंताणुवंधि४ तिरिक्खगदि-णीचागो. बंधगा जीवा सरिसा विसेसा० । सेसाणं बंधगा जीवा विसेसा। ३२८. तिरिक्खेसु-सव्वत्थोवा मणुसायु-बंधगा जीवा। णिरयायु-बंधगा जीवा असंखेज० । देवायु-बंधगा जीवा असंखेज० । देवगदि-बंधगा जीवा संखेज ० । णिरयगदि-बंधगा जीवा संखेज० । वेउव्विय बंधगा विसेसा० । तिरिक्खायु-बंधगा जीवा अणंतगुणा । उच्चागोदस्स बंधगा जीवा संखेज० । मणुसगदि बंधगा जीवा संखेज० । पुरिस० बंधगा जीवा संखेजः । इथि० बंधगा जीवा संखेज० । जस० बंधगा जीवा संखेन । साद-हस्सरदि-बंधगा जीवा संखेज० । असाद-अरदि-सोगबंधगा जीवा संखेज० । अजस० बंधगा जीवा विसेसा० । णवंस० बंधगा जीवा विसेसा० । तिरिक्खगदि-बंधगा जीवा विसेसा० । णीचागो० बंधगा जीवा विसेसा० । विशेष, उच्चगोत्रके बन्धक जीव असंख्यातगणे हैं। _ विशेषार्थ-तीर्थकर प्रकृति के बन्धक तीसरी पृथ्वी पर्यन्त पाये जाते हैं, नीचे नहीं पाये जाते। सातवों पृथ्वीमें-मनुष्यगति, उच्चगोत्रके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। तियंचायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। विशेषार्थ-सातवीं पृथ्वीमें मनुष्यायुका बन्ध नहीं होता है, "चरिमे मिच्छेव तिरियाम्" (गो० क० १०६)। "छटोत्ति य मणुवाऊ।" सातवीं पृथ्वीमें मिथ्यात्वगुणस्थानमें ही तिथंचायुका बन्ध होता है । मनुष्यायुका छठी पृथ्वी तक बन्ध कहा है, इससे यहाँ मनुष्यायुका कथन नहीं किया गया है। पुरुषवेदके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे गणे हैं। आगे इसी प्रकार संख्यातगुणे संख्यातगुणका भंग है। विशेष यह है कि मिथ्यात्वके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। स्त्यानगृद्धि त्रिक, अनन्तानुबन्धी ४, तिथंचगति और नीच गोत्रके बन्धक जीव समान रूपसे विशेषाधिक हैं। शेष प्रकृतियोंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। ३२८. तिर्यचोंमें - मनुष्यायुके बन्धक जीव सर्वस्तोक हैं। नरकायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। देवायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। देवगतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। नरकगति के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । तिर्यंचायु के बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। उच्च गोत्रके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। मनुष्यगतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । पुरुषवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। स्त्रीवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । यशःकीतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । साता-वेदनीय, हास्य, रतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। असाता, अरति, शोकके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। अयशःकीतिके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। नपुंसकवेदके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। तियंचगति के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। नीच गोत्रके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। hotho.the Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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