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महाबंधे जीवा विसे० । लोभसंज. बंध० जीवा विसेसा० । सव्वत्थोवा सत्तणोक० अबंधगा जीवा । हस्सरदिबंधगा जीवा असंखेजगु० । अरदिसोग-बंधगा जीवा विसेसा० । भयदुगुच्छाबंधगा जीवा विसेसा० । लोभसंज. बंधगा जीवा विसेसा० । सपत्थोवा सत्तणोक० पुरिस० बंधगा जीवा विसेसा० । मणुमायु-बंधगा जीवा थोवा । देवाउगं बंधगा जीवा असंखेजः । दोण्णं बंधगा जीवा विसे० । अबं. जीवा असंखेजः । दोणं गदीगं अबंध० जीवा थोवा । देवगदि-बंधगा जीवा असंखेज० । मणुसगदिबंधगा जीवा असंखेज० । दोणं बंध. जीवा विसेमा० । सम्वत्थोवा पंचिंदि० समचदुर० बजरिसभ-संघ० वण्ण०४ अगुरु०४ पसत्थवि० तस०४ सुभग-सुस्सर-आदे०णिमिण-उच्चागोदाणं अबंधगा । बंध. जीवा असंखेज। पंचसरी० अबंधगा जोवा थोवा । आहारसरीर-बंधगा जीवा संखेज्जगु० । वे उन्विय० बंधगा जीवा असंखेज्ज । ओगलि० बंधगा जीवा असंखेज्जः। तेजाक. वंधगा जीवा विसेमा० । सम्बत्योवा तिण्णि-अंगो० अबंधगा जीवा । आहार. अंगो० बंधगा जीवा संखेज० । वेउब्धिय० विशेषाधिक हैं । लोभ-संज्वलनके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं ।
__सात नोकषायके अबन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। हास्य-रतिके बन्धक जीव असंख्यातगुगे हैं। अरति शोकके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। भय-जुगुःसाके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । पुरुषवेद के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं।
विशेषार्थ-नपुंसकवेदके बन्धक मिथ्यात्व गुणस्थानवर्ती है। स्त्रीवेदके बन्धक सासादन पर्यन्त हैं। अतः इस सम्यक्ज्ञानके वर्णनमें उक्त वेदद्वयको छोड़कर सात नोकषायका कथन किया गया है।
मनुध्यायुके बन्धक जीव स्तोक हैं। देवायुके बन्धक जीव असंख्यातगुगे हैं। दोनों के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं । अबन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं।
विशेषार्थ-नरकायुकी बन्धव्युच्छित्ति मिथ्यात्व गुगस्थानमें होती है। तिर्य चायुकी सासादनमें बन्ध व्युच्छित्ति कही है, इससे यहाँ इन दो आयुआंका कथन नहीं किया गया है।
दोनों गतिके अबन्धक जीव स्तोक हैं। देवगतिके बन्धक जीव असंख्यातगगे हैं। मनुष्य गतिके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । दोनोंके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं।
पंवेन्द्रिय जाति, समचतुरस्र संस्थान, वनवृषभसंहनन, वर्ण ५, अगुम्लघु ४, प्रशस्त विहायोगति, त्रस ४, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण और उच्च गोत्रके अबन्धक जीव सबसे स्तोक हैं। बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं।
५ शरीरके अबन्धक जीव स्तोक हैं। आहारक शरीरके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । औदारिक शरीरके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं । तैजस, कार्मण के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं।
तीनों अंगोपांगके अबन्धक जीव सबसे कम हैं। आहारक अंगोपांगके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। वैक्रियिक अंगोपांगके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। औदारिक अंगोपांगके
* एतचिह्नान्ततिः पाठोऽधिकः प्रतिभाति ।
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