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पयडिबंधाहियारो
३२७ संखेजगुणा । हस्सरदिवंधगा जीवा संखेजगुणा। अरदिसोगाणं बंधगा जीवा संखेजगुणा। णबुंसकवेदस्स बंधगा जीवा विसेसाहिया। भयदुगुच्छाणं बंधगा जीवा विसेसाहिया । आयु० अंगोवं० संघ० आदा० उजो० विहाय. संठाणं च मूलोघं। सव्वत्थोवा पंचिंदिय-बंधगा जीवा । सेस-बंधगा जीवा संखेजगुणा। सव्वत्थोवा देवगदिबंधगा जीवा । णिरयगदिबंधगा जीवा संखेजगणा । मणुसगदिबंधगा जीवा अणंतगुणा । तिरिक्खगदिबंधगा जीवा संखेजगुणा । चदुण्णं गदीणं बंधगा जीवा विसेसा० । सव्वत्थोवा वेउब्धिय-बंधगा जीवा । ओरालियबंधगा जीवा अणंतगुणा। तेजाकम्मइगबंधगा जीवा विसेसा० । संठाणं णिरयभंगो । सव्वत्थोवा परघादुस्सा० बंधगा जीवा । अबंधगा जीवा संखेजगुणा । अगु० उप० बंधगा जीवा विसेसा० । सेसाणं युगलाणं सादासादभंगो। एवं पंचिंदियतिरिक्खाणं। णवरि यं हि अणंतगुणं तं हि असंखेजगुणं कादव्वं ।
३०४. पंचिंदिय-तिरिक्ख-जोणिणीसु-दसणावरण-मोहणीय-गोदे एसेव भंगो। सव्वत्थोवा मणुसायुबंधगा जीवा । णिरयायुबंधगा जीवा असंखेजगुणा । देवायु-बंधगा
पुरुपवेदके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं । स्त्रीवेदके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । हास्य, रति के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। अरति, शोकके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं । नपुंसकवेदके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। भय, जुगुप्साके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं।
आयु, अंगोपांग, संहनन, आतप, उद्योत, विहायोगति, संस्थानके बन्धकोंमें मूलके ओघवत् जानना चाहिए।
पंचेन्द्रिय जातिके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। शेष जातियों के बन्धक जीव संख्यावगुणे हैं। देवगति के बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। नरक गति के बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। मनुष्यगति के बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। तियं चगतिके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। चारों गति के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। वैक्रियिक शरीरके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। औदारिक शरीरके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। तैजस, कार्मण के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। . संस्थानोंके बन्धकोंमें नरकगतिके समान भंग हैं। अर्थात् समचतुरस्र संस्थानके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। शेषके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। परघात, उछ्वासके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। अबन्धक जीव संख्यातगणे हैं। अगुरुलघु, उपघात के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। शेष युगलों के बन्धकोंमें साता-असाताका भंग जानना चाहिए। पंचेन्द्रिय तिर्यचोंमें भी इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष यह है कि जहाँ 'अनन्तगुणा' है वहाँ 'असंख्यातगुणा' लगाना चाहिए।
विशेषार्थ-पंचेन्द्रिय-तिर्यंच-पर्याप्तकोंका पृथक् वर्णन नहीं किया गया है, अतः प्रतीत होता है कि पंचेन्द्रिय तिय चोंके समान उनका वर्णन होगा।
३०४. पंचेन्द्रिय-तिर्यंच-योनिमतियोंमें - दर्शनावरण, मोहनीय और गोत्रके बन्धकों में यही भंग जानना चाहिए।
मनुष्यायुके बन्धक जीव सर्व स्तोक हैं। नरकायु के बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। देवायुके बन्धक जीव असंख्यातगुणे हैं। तिर्यंचायुके बन्धक जीव संख्यातगुणे हैं। चारों
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