SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 447
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३२२ महाबंधे जीवा विसेसाहिया । थीणगिद्धि ०३ अबंधगा जीवा विसेसाहिया । बंधगा जीवा अणंतगुणा । णिहापचलाबंधगा जीवा विसेसाहिया । चदुदंस० बंधगा जीवा विसेसाहिया। सव्वत्थोवा सादासादाणं दोणं पगदीणं अबंधगा जीवा । सादबंधगा जीवा अणंतगुणो । असादबंधगा जीवा संखेजगुणा । दोण्णं बंधगा जीवा विसेसाहिया ।। २६४. सव्वत्थोवा लोभसंजलण-अबंधगा जीवा । माय-संजलण-अर्बधगा जीवा विसेसाहिया । माण-संजलणअबंधगा जीवा विसेसाहिया । कोधसंजलण-अबंधगा जीवा विसेसाहिया। पञ्चक्खाणा०४ अबंधगा जीवा विसेसाहिया । अपचक्खाणावर०४ अबंधगा जीवा विसेसाहिया । अणंताणुबंधि०४ अबंधगा जीवा विसेसाहिया। मिच्छत्तअबंधगा जीवा विसेसाहिया, बंधगा जीवा अणंतगुणा । अणंताणुबंधि०४ बंधगा जीवा विसेसाहिया। अपञ्चक्खाणा०४ बंधगा जीवा विसेसाहिया। पञ्चक्खाणा०४ बंधगा जीवा विसेसाहिया। कोधसंजलण-बंधगा जीवा विसे | माणसंजलण-बंधगा जीवा विसे० । मायसंजलण-बंधगा जीवा विसे० । लोभसंजलण-बंधगा जीवा विसे । २६५. सव्वत्थोवा णवणोकसायाणं अबंधगा जीवा । पुरिसवेदस्स बंधगा जीवा इनसे विशेष अधिक हैं। स्त्यानगृद्धित्रिकके अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। इनके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। निद्रा, प्रचलाके बन्धक जीव विशेष अधिक हैं। चार दर्शनावरणके बन्धक जीव इनसे विशेषाधिक हैं। साता-असाता दोनों प्रकृतियोंके अबन्धक जीव सबसे कम अर्थात् स्तोक हैं। साताके बन्धक जीव अनन्तगुणे हैं। असाताके बन्धक जीव संख्यातगुणित हैं। दोनोंके बन्धक जीव इनसे विशेषाधिक हैं। विशेषार्थ-साता-असाताके अबन्धक अयोगकेवली हैं। उनकी संख्या ५६८ है। 'गोम्मटसार' जीव काण्डमें लिखा है-प्रमत्त गुणस्थानवाले ५६३९८२०६ हैं, अप्रमत्त गुणस्थानवाले २६६६६१०३ हैं, उपशम श्रेणीवाले चार गुणस्थानवर्ती ११९६, क्षपक श्रेणीवाले चारों गुणस्थानवर्ती २३६२ हैं, सयोगीजिन ८९८५०२ हैं । इनको जोड़नेपर CELLE३६६ संख्या होती है। तीन घाटि नव कोटि प्रमाण समस्त सकल संयमियोंकी संख्या में-से उक्त प्रमाण घटानेपर ५९८ अयोगीजिन कहे गये हैं। (गो० जी०सं० टीका पृ०. १०८५.) । . २६४. सबसे स्तोक लोभ संज्वलनके अबन्धक जीव हैं। माया संज्वलनके अबन्धक जीवं इनसे विशेषाधिक है। मान संज्वलनके अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं । क्रोध संज्वलनके अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। प्रत्याख्यानावरण ४ के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। अप्रत्याख्यानावरण ४ के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। अनन्तानुबन्धी ४ के अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मिथ्यात्वके अबन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मिथ्यात्व के बन्धक जीव इनसे अनन्तगुणे हैं। अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। अप्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। प्रत्याख्यानावरण ४ के बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। क्रोध संज्वलनके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। मान संज्वलनके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। माया संज्वलनके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। लोभ संज्वलनके बन्धक जीव विशेषाधिक हैं। २६५. नव नोकषायोंके अबन्धक जीव सर्वसे स्तोक अर्थात् अल्प हैं। पुरुषवेदके Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy