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________________ पडबंधाहियारो ३१६ O २६१. उवसम० - पंचणा० छदंस० चदुसंज० पुरिस० भयदु० तेजाक० वण्ण०४ पंचिदि० अगुरु ०४ पत्थवि० तस०४ सुभग- सुस्सर-आदे० णिमि० तित्थयर० उच्चागोदं पंचत० बंधगा त्ति को भावो ? ओदइगो भावो । अबंध उवसमियो भावो । साद- बंधा - अबंध० ओदइगो भावो । असाद-बंधगा त्ति को भावो ? ओदह० । अबंधगा त्ति० ओदइग० उवस० खयोवस० । दोष्णं बंधगा० ओदइ० । अबंधा णत्थि । अकसा • बंध० ओदइगो भावो । अबंध० उवसः खयोवस मिगो वा । हस्तरदि० गतिको भाव ? ओदइगो भावो । अबंध० ओदगो वा उवसमिगो वा । अरदिसोगं बंधगाति ओदइ० । अबंधगा० ओदइ० उवस० खयोव० | दोष्णं बंधगाि विशेष – वेदकसम्यक्त्व अप्रमत्त गुणस्थान पर्यन्त पाया जाता है और ध्रुव प्रकृतियोंके अबन्धक 'उपशान्तकषायी होते हैं। इस कारण यहाँ ध्रुव प्रकृतियोंके अबन्धक नहीं कहे हैं। शेष प्रकृतियों में तेजोलेश्या के समान भंग है । २९१. उपशम सम्यक्त्वमें - ५ ज्ञानावरण, स्त्यानगृद्धित्रिक रहित ६ दर्शनावरण, ४ संज्वलन, पुरुषवेद, भय, जुगुप्सा, तैजस- कार्मण शरीर, वर्ण ४, पंचेन्द्रिय जाति, अगुरुलघु, प्रशस्त विहायोगति, त्रस ४, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थंकर, उच्च गोत्र तथा पाँच अन्तरायोंके बन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक भाव है । अबन्धकोंके औपशमिक भाव है । सातावेदनीयके बन्धकों, अबन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक भाव है । असाता वेदनीय बन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक भाव है । अबन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक, औपशमिक तथा क्षायोपशमिक है । साता-असाताके बन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक है; अबन्धक नहीं हैं। आठ कषायों के बन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक भाव है । अबन्धकोंके कौन भाव है ? औपशमिक वा क्षायोपशमिक है । हास्य,रतिके बन्धकों के कौन भाव है ? औदयिक भाव है। अबन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक वा औपशमिक है । अरति शोकके बन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक भाव है । अबन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक, क्षायोपशमिक तथा औपशमिक भाव है । विशेष-- अरति शोकके अबन्धक, किन्तु हास्य रतिके बन्धककी दृष्टिसे औदयिक भाव हैं । अरति, शोककी बन्ध-व्युच्छित्ति प्रमत्तसंयतों के होती है। अतएव अरति, शोकके, अबन्धक अप्रमत्त संयतों की अपेक्षा क्षायोपशमिक भाव कहा है । उपशम श्रेणीकी अपेक्षा औपशमिक भाव कहा है । हास्य- रति, अरति शोक इन दोनों युगलोंके बन्धकोंके कौन भाव है ? औदयिक है । अन्धकोंके कौन भाव है ? औपशमिक भाव है । विशेष – इन चारोंके अबन्धक अनिवृत्तिकरण गुणस्थानवर्ती होंगे, वहाँ चारित्रमोहनी की अपेक्षा औपशमिक भाव कहा है । १. “क्षायोपशमिकसम्यक्त्वे असंयतसम्यग्दृष्ट्यादीनि अप्रमत्तान्तानि ।” स० सि० पृ० १२ । २. "औपशमिकसम्यक्त्वे असंयतसम्यग्दृष्ट्यादीनि उपशान्तकषायान्तानि ।" - पृ० १२ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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