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पयडिबंधाहियारो वासपुधत्तं । थीणगिद्धि०३ मिच्छत्त-अणंताणुबंधि०४ ओरालि० बंधगा णत्थि अंतरं । अबंधगा जहण्णण एगस० । उक्कस्सेण मासपुधत्तं । दोआयु० छस्संघ० दोविहाय० दोसर० बंधा-अबंधगा णस्थि अंतरं। णवरि मणुसायु ओघ । तित्थयर० बंधगा जह.. एगस० । उक्कस्सेण वासपुधत्तं । अबंधगा णस्थि अंतरं। सेसाणं पोगेण साधारणेण य णत्थि अंतरं । अबंधगा जहण्णेण एगस० । उक्कस्सेण वासपुधत्त ।
२५२. वेउव्वियका०-देवोघं । वेउव्वियमिस्स-धुविगाणं बंधगा जहण्णेण एगस०। उक्कस्सेण बारस मुहुन् । अबंधगा णत्थि अंतरं । थीणगिद्धि०३ मिच्छत्त-अणताणुबं०४ अबंधगा, तित्थय० बंधगा ओरालियमिस्सभंगो । सेसाणं बंधाबंधगा जहण्णेण एगस० उक० बारसमुहुत्तं । णवरि एइदिय०३ चउव्वीस मुहुत्त । समुद्धात रहित केवली जघन्यसे एक समय तथा उत्कृष्ठसे वर्षपृथक्त्व पर्यन्त होते हैं ।-ध० टी०,अन्तरा० पृ०६१।
स्त्यानगृद्वित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ तथा औदारिक शरीरके बन्धकोंका अन्तर नहीं है। अबन्धकोंका अन्तर ज वन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे मासपृथक्त्व अन्तर है । दो आयु, ६ संहनन और २ विहायोगति, २ स्वरके बन्धकों, अबन्धकोंका अन्तर नहीं है। विशेष यह है कि मनुष्यायुके विषयमें ओघवत् जानना ।' तीर्थकरके बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्ट से वर्षपृथक्त्व अन्तर है । अबन्धकोंका अन्तर नहीं है।
विशेष-इस योगमें तीर्थंकर प्रकृतिके बन्धक चतुर्थगुणस्थानवर्ती जीव होंगे। उनका जघन्य एक समय और उत्कृष्ट वर्षपृथक्त्व अन्तर कहा है।
शेष प्रकृतियोंके बन्धकोंका प्रत्येक तथा सामान्यसे अन्तर नहीं है। अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे वर्षपृथक्त्व अन्तर है।
२५२. वैक्रियिक काययोगमें-देवोंके ओघवत् जानना चाहिए । वैक्रियिक मिश्रकाययोगमें ध्रुव प्रकृतियों के बन्धकोंका जघन्य अन्तर एक समय, उत्कृष्ट १२ मुहूर्त अन्तर है।
विशेषार्थ-सर्व वैक्रियिक मिश्रकाययोगियोंके पर्याप्तियोंको पूर्ण कर लेनेपर एक समयका अन्तर होता है। देव तथा नारकियोंमें न उत्पन्न होनेवाले जीव यदि बहुत अधिक काल तक रहते हैं तो बारह मुहूर्त तक ही रहते हैं । यह कैसे जाना ? .
समाधान-जिण-वयण-विणिग्गय-वयणादो-जिनेन्द्रके मुखसे निकले हुए वचनोंसे जाना जाता है । (खु० बं०,टीका,पृ० ४८५)
अबन्धकोंका अन्तर नहीं है । स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ के अबन्धकोंका तथा तीर्थंकरके बन्धकोंका औदारिक मिश्रकाय योगके समान भंग जानना चाहिए। शेष प्रकृतियोंके बन्धकों,अबन्धकोंका जघन्य अन्तर एक समय, उत्कृष्ट १२ मुहूर्त अन्तर है। विशेष यह है कि एकेन्द्रियत्रिकका अन्तर २४ मुहूर्त जानना चाहिए ।
१. "असंजदसम्मादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? जाणाजीव पडुच्च जहण्णेण एगसमयं उक्कस्सेण वासपुधत्तं ।'-१६३-६४ । २. "वेउव्वियमिस्सकायजोगीसु मिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? णाणाजीवं पडुच्च जहण्णेण एगसमयं उक्कस्सेण बारसमुहुत्तं ।" -षट्खं०,अंतरा० १७०-१७१ ।
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