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________________ २७५ मद्दाबंघे स्सेण अंतोमुहुत्तं चदुष्णं आयुगाणं बंधगा जहणणेण अंतोमुहुत्तं उक० पलिदोवमस्स • असंखेञ्जदिभागो | सेस-भंगा सव्वद्धा । 1 २२७. एवं तिणि मण० तिष्णि वचि० । णवरि वेदणीयस्स साधारणेण अबंधगा णत्थि । चदुआ बंधगा जहणणेण एगस०, उक्क० पलिदोवमस्स असंखेञ्जदिभागो । दोमण० दोवचि ० पंचणा० छदंसणा ० चदुसंज० भयदु० तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमिण० पंचतराइगाणं बंधगा सव्वद्धा । अबंधगा जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुतं । सादासादाणं बंधगा- अबंधगा सव्वद्धा । दोष्णं बंधगा सव्वद्धा, अबंधगा णत्थि । इत्थि० पुरिस० णवंसगवेदाणं बंधगा- अबंधगा सव्वद्धा । तिष्णं वेदाणं बंधगा सव्वद्धा । अबंधगा जह० एगसमओ, उक्क० अंतोमुहुत्तं । एवं दोयुगलचदुर्गादि- पंचजादिदोसरीरछस्संठाण- चदुआणुपुव्वि० तस थावरादि-णवयुगलं दोगोदं च । आहारदुगं दोअंगो छस्संघ० परघादुस्सास- आदाउजो० दो विहाय दोसर • तित्थय० पत्तेगेण साधारण बंधगा-अबंधगा सव्वद्धा । चदुष्णं आयुगाणं बंधगा जह० एस ०, उक्क०, पलिदोवस्त असंखेजदिभागो । अबंधगा सव्वद्धा । २२८. एवं चक्खुदं० अचक्खुदं० सण्णि त्ति ) णवरि चक्खुदं० सणि० आयु० जघन्य, उत्कृष्टकाल अन्तर्मुहूर्त है । चार आयुके बन्धकोंका जघन्यसे अन्तर्मुहूर्त, उत्कृष्ट पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है । शेष भंग सर्वकाल है । २२७. तीन मनोयोग, तीन वचनयोगमें इसी प्रकार है । इतना विशेष है कि वेदनीयके सामान्यसे अबन्धक नहीं है। चार आयुके बन्धकका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्ट पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग काल है। दो मन तथा दो वचनयोगमें-पाँच ज्ञानावरण, छह दर्शनावरण, ४ संज्वलन, भय, जुगुप्सा, तैजस- कार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण तथा पाँच अन्तरायोंके बन्धकोंका सर्वकाल है । अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त है । साता असता बन्धकों-अबन्धकोंका काल सर्वकाल है। दोनोंके बन्धकोंका सर्वकाल है, अबन्धक नहीं हैं । स्त्रीवेद, पुरुषवेद, नपुंसक वेदके बन्धकों, अबन्धकोंका सर्वकाल है । तीनों वेदोंके बन्धकोंका सर्वकाल है । अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे अन्तर्मुहूर्त है । हास्यादि दो युगल, चार गति, पाँच जाति, दो शरीर, छह संस्थान, ४ आनुपूर्वी, त्रस-स्थावरादि नव युगल तथा दो गोत्रों में भी इसी प्रकार जानना, अर्थात् अबन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे अन्तमुहूर्त है तथा बन्धकोंका सर्वकाल है । आहारकद्विक, २ अंगोपांग, ६ संहनन, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, दो विहायोगति, २ स्वर तथा तीर्थंकर प्रकृति के बन्धकों, अबन्धकोंका प्रत्येक तथा सामान्यसे सर्वकाल है। चार आयुके बन्धकोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्टसे पल्योपमका असंख्यातवाँ भाग है; अबन्धकोंका सर्वकाल है । १ २२८. चक्षुदर्शन, अचक्षुदर्शन तथा संज्ञी जीवों में इसी प्रकार जानना चाहिए। विशेष, ० १. जोगाणुवादेण पंचमणजोगी पंचवचिजोगी कायजोगी ओरालियकायजोगी ओरालिय मिस्सकायजोगी वेउव्वियकायजोगी कम्मइयकायजोगी केवचिरं कालादो होंति ? सव्वद्धा - खु० बं०, १६, १७ । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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