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महाबंधे २१२. किण्ह-णील-काउ - धुविगाणं बंधगा सव्वलोगो। अबंधगा णस्थि । थीणगिद्धि३ अर्णताणु०४ बंधगा अबंधगा खेत्तभंगो। मिच्छत्तबंधगा सबलोगो । अबंधगा पंच-चत्तारि-बे-चौदसभागो वा । दो आयु-देवगदि-देवाणु० तित्थयर-बंधगा खेत्तभंगो । अबंधगा सव्वलोगो ।
नाम निवृत्ति है। वह अपर्याप्त काल में नहीं है। इसलिए - "लद्धि पडुच्च अत्थि, णिवत्तिं पडुश्च णत्थि ।" (सू० १८६ खु० बं० )। लब्धिकी अपेक्षा उपपाद पदसे लोकका असंख्यातवाँ भाग स्पृष्ट है । यह वर्तमान काल की अपेक्षासे है । अतीत कालकी अपेक्षा सर्वलोक स्पृष्ट है।
चक्षुदर्शनी तिथंच और मनुष्यों में से चक्षुदर्शनियों में उत्पन्न हुए देव व नारकियां-द्वारा १४ भाग स्पृष्ट हैं, क्योंकि लोकनालीके बाहर चक्षुदर्शनी जीवोंका अभाव है, तथा आनतादि उपरिम देवोंका तियचोंमें उत्पाद भी नहीं है। यह वा शब्दसे सूचित अर्थ है । एकेन्द्रिय जीवोंमें-से चक्षु-इन्द्रिय सहित जीवोंमें उत्पन्न हुए जीवों द्वारा प्रथम समयमें सर्वलोक स्पृष्ट है; क्योंकि वे अनन्त हैं तथा सर्व प्रदेशोंसे उनके आगमनकी सम्भावना भी है । (खु० बं० ४३४-४३७ )।
_अचक्षुदर्शनीमें असंयतके समान भंग है। पर्यायार्थिक नयका अवलम्बन करनेपर अचक्षुदर्शनी जीवोंकी प्ररूपणा असंयत जीवोंके तुल्य नहीं है, क्योंकि अचक्षुदर्शनियों में तैजस तथा आहारक समुद्घान पद पाये जाते हैं ।
विशेषार्थ-कृष्णादि लेश्यात्रयमें असंयतोंके समान भंग है । असंयतोंमें नपुंसक वेदके समान भंग है । नपुंसक वेद में स्वस्थान, समुद्घात तथा उपपादसे सर्वलोकस्पृष्ट है।
२१२. कृष्ण-नील-कापोत लेश्यामें - ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धकोंके सर्वलोक है; अबन्धक नहीं है । स्त्यानगृद्धित्रिक, अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धकों, अबन्धकोंका क्षेत्र के समान भंग है । मिथ्यात्वके बन्धकोंका सर्वलोक है । अबन्धकोंका ५४, ३४.३४ है ।
विशेष-मारणान्तिक समुद्धात तथा उपपाद-पद-परिणत छठे नरकके नारकी सासादन गुणस्थानीने कृष्णलेश्यायुक्त हो १४, नील लेश्यावाले ५वीं पृथ्वीवालोंने ४ तथा कापोत लेश्यावाले तीसरी पृथ्वीके नारकी सासादनसम्यक्त्वी जीवोंने 3 भाग स्पर्श किया है (पृ० २६१)।
देवायु, नरकायु, देवगति, देवानुपूर्वी तथा तीर्थंकरके बन्धकोंका क्षेत्र के समान लोक
१. सणाणुवादेण चक्खुदंसणी सत्थाणेहि केवडियं खेत्तं कोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो। अट्ठचोद्दसभागा वा देसूणा । समुग्घादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो अटुचोद्द सभागा देसूणा। सव्वलोगो वा उववादं सिया अस्थि सिया पत्थि । लद्धि पडुच्च अस्थि, णिवत्ति पडुच्च णत्थि । जदि लद्धि पडुच्च अत्यि, केवडियं खेत्तं फोसिदं? लोगस्स असंखेज्जदिभागो। सव्वलोगो वा । -खु० ब०,सू० १७-१८६ । अचक्खुदंसणी असंजदभंगो । सू० १६० । असंजदाणं णसयभंगो १७७ । णव॑सयवेदा सत्थाण-समुग्घाद-उववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सबलोगो -सू० १३८, १३९ । २. लेस्साणुवादेण किण्हलेस्सिय-णीललेस्सिय-का उलेस्सियाणं असंजदभंगो -सू० १६३, खु० बं०। ३. सासणसम्मादिट्रीहि केवडियं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो। अट्ठबारहचोदृसभागा वा देसूणा । सू० ३-४। सासणसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो । पंचचत्तारिवेचोद्दसभागा वा देसूणा। स० - १४७, १४८ ।
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