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महाबंघे
अट्ठतेरह भागो, सव्वलोगो वा । अबंधगा अट्ठभागो । दोष्णं गोदाणं बंधगा अट्ठतेरहभागो सव्वलोगो वा । अबंधगा णत्थि ।
२०६. एवं पुरिसवेदस्स । णवरि तित्थयरं बंधगा अट्ठचोदसभागो । अबंधगा अट्टतेरहभागो, सव्वलोगो वा. ।
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२०७. बुंगवेद ० - धुविगाणं बंधगा सव्वलोगो । अबंधगा णत्थि | थीण गिद्धितियं अनंताणुबंधिचदुक्कं बंधगा सव्वलोगो । अबंधगा छच्चो६सभागो । णिद्दा- पयलापच्चक्खाणाव ०४ भयदु० तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमिणं बंधगा सव्वलोगो । अबंधगा खेत्तभंगो | सादासाद-बंधगा अबंधगा सव्वलोगो । दोष्णं बंधगा सव्वलोगो अबंधगा णत्थि । एवं जस-अजस गित्ति- दोगोदाणि (?) मिच्छत्तं बंधगा सव्वलोगो । अबंधा बारह भागो । अपच्चक्खाणावरण- चउक्कं बंधगा सव्वलोगो । अबंधगा बन्धकोंका, वा सर्वलोक है । अबन्धकोंका १४ है । दोनों गोत्रोंके बन्धकोंका वा सर्वलोक है । अबन्धक नहीं है ।
२०६. पुरुषवेद में इसी प्रकार है । विशेष, तीर्थंकर प्रकृतिके बन्धकोंका है। अबन्धकोंका १४, १३ वा सर्वलोक है ।
२०७. नपुंसक वेद में - ध्रुव प्रकृतियोंके बन्धकोंका सर्वलोक है; अबन्धक नहीं हैं । स्त्यानगृद्धित्रिक, अनन्तानुबन्धी ४ के बन्धकों का सर्वलोक है, अबन्धकका १ है ।
विशेष - मारणान्तिक पद परिणत असंयत सम्यक्त्वी नपुंसक वेदीका अच्युत कल्पके स्पर्शनकी अपेक्षा भाग कहा है ( पृ० २७८) ।
निद्रा, प्रचला, प्रत्याख्यानावरण ४, भय-जुगुप्सा, तैजस- कार्मण, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माणके बन्धकोंका सर्वलोक है । अबन्धकोंका क्षेत्र के समान लोकका असंख्यातवाँ भाग है। साता असाताके बन्धकों, अबन्धकोंका सर्वलोक स्पर्शन है। दोनोंके बन्धकोंका सर्वलोक है : अबन्धक नहीं है । यशःकीर्ति, अयशःकीर्ति, दोनों गोत्रों में ( ? ) इसी प्रकार जानना चाहिए।
विशेष- दो गोत्रोंका वर्णन आगे आया है। इससे यहाँ उनके उल्लेखका पाठ अधिक प्रतीत होता है ।
मिथ्यात्व के बन्धकोंका सर्वलोक है।
विशेषार्थ -- खुद्दाबन्ध' टीका में लिखा है, नपुंसकवेदी जीवोंने स्वस्थान समुद्घात और उपपाद पदोंसे सर्वलोक स्पर्श किया है। इसका भाव यह है कि स्वस्थान, वेदना कषायमारणान्तिक समुद्घातों और उपपाद पदोंसे अतीत व वर्तमानकालकी अपेक्षा नपुंसकवेदियोने सर्वलोक स्पर्श किया है। तैजस व आहारक समुद्घात नपुंसकवेदियोंके नहीं होते । विहारवत्स्वस्थान और वैक्रियिक समुद्घात पदोंसे वर्तमान कालकी अपेक्षा स्पर्शनका निरूपण क्षेत्र प्ररूपणा के समान है । अतीतकालकी अपेक्षा तीन लोकोंके असंख्यातवें भाग, तिर्यग्लोक के संख्यातवें भाग, और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यातगुणे क्षेत्रका स्पर्श किया है। इतनी विशेषता है
१. " सम्मामिच्छादिट्ठि - असंजदसम्मादिट्ठीहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? लोगस्स असंखेज्जदिभागो । अचोट् सभागा वा देसूणा फोसिदा । " पटखं०, फो० सू० १०६ । २. बुंसयवेदा सत्थाण - समुग्धादउववादेहि केवडियं खेत्तं फोसिदं ? सम्बलोगो । - खु० बं० सू० १३८, १३९ ।
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