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पयडिबंधाहियारो पसत्थविहायगदिं बंधगा अडचोद्दसभागो। अबंधगा अट्ठतेरह० सबलोगो वा । अप्पसत्थविहायगदि बंधगा अवारहभागो। अबंधगा अट्ठणवचोद्दसभागो सव्वलोगो वा । दोण्णं बंधगा अवारहभागो। अबंधगा अट्ठणवचोद्दसभागो सबलोगो वा। एवं दोसराणं । तस-बंधगा अट्ठबारहभागो । अबंधगा अट्ठणवचोद्दसभागो, सव्वलोगो वा। थावर-बंधगा अट्ठणव-चोद्दसभागो सबलोगो वा। अबंधगा अट्ठबारहभागो । दोण्णं पगदीणं बंधगा अट्ठतेरहभागो सव्वलोगो वा । अबंधगा खेत्तभंगो। बादर-बंधगा अह-तेरहभागो। अबंधगा लोगस्स असंखेजदिभागो, सबलोगो वा । सुहुम-बंधगा लोगस्स असंखेज्जदिभागो, सव्वलोगो वा । अबंधगा अट्ठतेरहभागो। दोण्णं पगदीणं बंधगा अट्टतरहभागो सबलोगो वा । अबंधगा खेत्तभंगो। एवं पज्जत्तापज्जत्तपत्तेयसाधारणं च । सुभग-आदेजाणं बंधगा अट्ठचोद्दसभागो, [ अबंधगा ] अतरहभागो, सबलोगो वा । दूभग-अणादेज्जाणं बंधगा अढतरहभागो, सव्वलोगो वा । अबंधगा अठ्ठचोदसभागो। दोण्णं पगदीणं बंधगा अट्ठतेरहभागो, सव्वलोगो वा । अबंधगा खेत्तभंगो । जसगित्तिस्स बंधगा अgणव-चोदसभागो। अबंधगा अट्ठतेरहचोदसभागो, सबलोगो वा । अजसगित्तिस्स बंधगा अट्ठतेरहभागो, सबलोगो वा। अबंधगा अट्ठणवचोद्दसभागो। दोण्णं बंधगा अट्ठतेरहभागो सबलोगो वा। अबंधगा गस्थि । उच्चागोदं बंधगा अट्ठभागो, अबंधगा अढतेरहभागो सव्वलोगोवा । णीचागोदं बंधगा
प्रशस्तविहायोगतिक बन्धकोंकाई है। अवन्धकोंका १, १३ वा सर्वलोक है। अप्रशस्त विहायोगति के बन्धकांका १२ है । अबन्धकोंका नई, १४ वा सर्वलोक है । दोनोंके बन्धकोंका है, है । अबन्धकोंका दई, नवा सर्वलोक है। दो स्वरोंमें विहायोगति के समान है। त्रस प्रकृतिके बन्धकोंका ४, १३ है। अबन्धकोंका दह, वा सर्वलोक है। स्थावरके बन्धकों का १४, ११ वा सर्वलोक है । अबन्धकोंका ४, १२ है। दोनोंके बन्धकोंका
१३ वा सवलोक है। अबन्धकोंका क्षेत्र के समान है। बादरके बन्धकोंका ११ है। अबन्धकोंका लोकका असंख्यातवाँ भाग वा सर्वलोक है। सूक्ष्म के बन्धकोंका लोकका असंख्यातवाँ भाग वा सर्वलोक है। अबन्धकोंका है, है। दोनांक बन्धकोंका 5, १३ वा सवे. लोक है । अबन्धकोंका क्षेत्र के समान स्पर्शन है । पर्याप्त, अपर्याप्त, प्रत्येक, साधारणमें भी इसी प्रकार जानना चाहिए।
सुभग, आदेयके बन्धकोंका है। [ अबन्धकोंका ] १, ३३ वा सर्वलोक है । दुर्भग, अनादेयके बन्धकोंका १, १३ वा सर्वलोक है । अवन्धकोंका है। सुभग, दुर्भग, आदेय, अनादेयके वन्धकोंका है, १३ वा सर्वलाक है। अबन्धकोंका क्षेत्रवत् भंग है। यश कीर्तिके बन्धकोंका , दहै। अबन्धकोंका १४, १४ वा सर्वलोक है। अयश कीर्ति के इन्धकोंका दह, ११ वा सर्वलोक है । अबन्धकोंका ४, ६४ है। दोनोंके बन्धकोंका १, १३ वा सर्वलोक है । अबन्धक नहीं है । ।
विशेष-दोनोंके अवन्धक उपशान्त कषायादिमें होते हैं अतएव स्त्रीवेदमें अबन्धकोंका अभाव बताया है।
उच्चगोत्रके बन्धकोंका है। अवन्धकोंका १, १३ वा सर्वलोक है। नीच गोत्र के
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