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महाबंधे ओरालियसरीर ओरालियमिस्स-अचक्खुदंसण-आहारग त्ति । णवरि केवलिभंगो णस्थि ।
१८७. आदेसेण णेरइएसु-सब्वे भंगा लोगस्स असंखेजदिभागे । एवं सव्वणेरइएसु, सव्वपंचिंदिय-तिरिक्ख-मणुस-अपज्जत्त-सव्वदेव-सव्वविगलिंदिय-तस-अपज्जत्त-बादरपुढवि० आउ० तेउ० बादरवणप्फदि-पत्तेय० पजत्ता-पंचमण. पंचवचि० [ वेउब्बिय ] वेउब्वियमिस्स० आहार० आहारमिस्स० इत्थि० पुरिस० विभंग० आभिणि० सुद० ओधि० मणपज्जव० सामाइय० छेदोव० परिहार० सुहुमसंप० संजदासंज० चक्खुदं० ओधिदसण-तेउलेस्सा-पम्मलेस्सा-वेदगसम्मा० उवसमसम्मा० सासण० सम्मामिच्छाइट्ठि सणि ति। तिरिक्खेसु-धुविगाणं बंधगा केवडिखेचे ? सव्वलोगे। अबंधगा
__ इसी प्रकार औदारिक काययोगी, औदारिक मिश्र काययोगी, अचक्षुदर्शनी तथा आहारकमें जानना चाहिए । विशेष यह है कि इसमें केवलीका भंग नहीं है।'
विशेषार्थ-औदारिककाययोगी स्वस्थान, वेदनासमुद्रात, कषाय तथा मारणान्तिक समुद्भातकी अपेक्षा सर्वलोकमें रहते हैं। विहारवत्स्वस्थानकी अपेक्षा तीन लोकों के असंख्यातये भागमें, तिर्यग्लोकके संख्यातवें भागमें और मनुष्यलोकसे असंख्यातगुणे क्षेत्रमें रहते है। वैक्रियिक समुद्भात, तैजससमुद्भात और दण्डसमुद्भातको प्राप्त उक्त जीव चार लोकोंके असंख्यातवें भागमें और अढ़ाई द्वीपसे असंख्यात गुणे क्षेत्रमें रहते हैं। इतना विशेष है कि तैजससमुद्भातको प्राप्त उक्त जीव मानुषक्षेत्रके संख्यातवें भागमें रहते हैं। यहाँ कपाट प्रतर तथा लोकपूरण और आहारक समुद्रात पद नहीं हैं। औदारिककाययोगीके उपपाद नहीं है।
१८७. आदेशसे - नारकियों में सर्व भंग लोकके असंख्यातवें भाग प्रमाण हैं। इसी प्रकार सर्व नारकी जीवों में जानना चाहिए । सर्व पंचेन्द्रिय-तियंच-मनुष्यके अपर्याप्तक, संपूर्ण देव, सर्व विकलेन्द्रिय, त्रस, इनके अपर्याप्त, बादर-पृथ्वी-जल-अग्नि, बादर वनस्पति प्रत्येक, इनके पर्याप्तक, ५ मनयोगी, ५ वचनयोगी, [वैक्रियिक] वैक्रियिकमिश्र, आहारक, आहारकमिश्र योगी, स्त्री-पुरुषवेद, विभंगज्ञान सुमति, सुश्रुत, अवधि-मनःपर्ययज्ञान, सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, सूक्ष्मसाम्पराय, संयतासंयत, चक्षुदर्शन, अवधिदर्शन, तेज-पद्मलेश्या, वेदकसम्यक्त्वी, उपशमसम्यक्त्वी, सासादन सम्यक्त्वी, मिश्रसम्यक्त्वी तथा संजीपर्यन्त इसी प्रकार है । अर्थात् यहाँ क्षेत्र लोकका असंख्यातवाँ भाग है।
१. कायजोगी-ओरालियमिस्सकायजोगी सत्थाणेण समुग्घादेण केवडिखेत्ते ? सव्वलोए । ओरालियकायजोगी सत्थाणेण समुग्घादेण केवडिखेत्ते ? सव्वलोए। उववादं णत्थि । अचक्खुदंसणो असंजदभंगो। असंजदा णवंसयभंगो। णव॒सयवेदा सत्थाणेण समुग्घादेण उववादेण केवडिखेत्ते ? सव्वलोए। आहाराणुवादेण आहारा सत्थाणेण समुग्धादेण उववादेण केवडिखेते सव्वलोगे ।। -खुद्दाबंध,खेत्ताणुगम । २. "आदेसेण गदियाणुवादेण णिरय गदीए णेरइएसु मिच्छाइटिप्पहुडि जाव असंजदसम्माइद्वित्ति केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे । एवं सत्तसु पुढवीसु णेरइया।" -ध० टी०,खे० सू० ५, ६, । ३. पंचिदियतिरिक्ख-पंचिदियतिरिक्खपज्जत्ता-पंचिदियतिरिक्ख-जोणिणी पंचिदियतिरिक्ख-अपज्जत्ता सत्थाणेण समग्यादेण उववादेण केवडिखेते? (६) लोगस्स असंखेज्जदिभागे (७)। मणुसगदीए मणुसा मणुसपज्जत्ता मणसिणी सत्थाणेण उववादेण केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे । समग्यादेण केवडिखेत्ते ? लोगस्स असंखेज्जदिभागे। असंखेज्जेसु वा भाएसु सव्वलोगे वा । मणुस-अपज्जत्ता सत्थाणेण समुग्धादेण उववादेण केवडिखेत्ते ? लोगस्स
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