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महाबंधे वेउवि० अंगो० देवाणुपु० पसत्थ० सुभग-सुस्सर-आदेज-उच्चागोदं च । आहारदुर्ग तित्थयरं देवायुभंगो । साधारणेण वि तिण्णिवेदाणं भंगो तिणिगदि-दोसरीर-छस्संठा• दोअंगो० तिण्णिआणु ० दोविहाय० थिरादिछयुगलं दोगोदं च । तिण्णिआयु-छस्संघ साधारणेण वि इत्थिभंगो । सुक्काए-पंचणा० छदसणा० बारसक० भयदु० पंचिंदि० तेजाक० वण्ण०४ अगु०४ तस०४ णिमि० पंचंत. बंधगा सयजी० केव० ? अणंतभागो । सव्वसुक्काए केव० ? असंखेजा भागा। अबंधगा सबजी० केव० ? अणंतभागो। सव्वसुकाए केव० ? असंखेजदिभागो। थीणगिद्धि०३ मिच्छत्त अणंताणुबंधि०४ तित्थयरं बंधगा केव० ? अणंताभागो ( अणंतभागो) । सव्वसुक्काए केव० ? संखेजदिभागा (गो)। अबंधगा सबजी० केव० ? अणंतभागो। सव्वसुक्काए केव० ? संखेजा भागा । दोवेदणी० हस्सादिदोयुगलं-थिरादितिण्णियुगलं च मणजोगिभंगो। इत्थि० णस० पंचसंठा० पंचसंघ० अप्पसत्थ० दृभग-दुस्सर अणादेज णीचागोदं च थीणगिद्धिभंगो। पुरिस० पसत्थवि० सुभग सुस्सर-आदेज-उच्चागोदं असादभंगो। दोआयुदोगदि-आहारदु० ओधिभंगो । मणुसगदि०४ बंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो। सव्वसुक्काए केव० ? असंखेजा भागा। अबंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो। सव्वसुक्काए केव० ? असंखेजदिभागो। एवं पत्तेगेण साधारणेण वि तिण्णिवेद-दोगदिसमचतुरस्रसंस्थान, वैिियक अंगोपांग, देवानुपूर्वी, प्रशस्तविहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय, उच्चगोत्रका पुरुष वेदके समान भंग है। आहारकद्विक, तीर्थकरका देवायुके समान भंग है । तीन गति, दो शरीर, ६ संस्थान, दो अंगोपांग, तीन आनुपूर्वी, २ विहायोगति, स्थिरादि छह युगल, दो गोत्रका सामान्यसे वेदत्रयके समान भंग जानना चाहिए। तीन आयु, छह संहननका सामान्यसे स्त्रीवेदके समान भंग है।
शुक्ल लेश्यामें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, १२ कपाय, भय, जुगुप्सा, पंचेन्द्रिय, तैजस-कार्मणा, वर्ण ४, अगुरुलघु ४, त्रस ४, निर्माण, ५ अन्तरायोंके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्व शुक्ललेझ्यावालोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं । अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्व शुक्ल लेश्यावालोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग है। स्त्यानगृद्धित्रिक, मिथ्यात्व, अनन्तानुबन्धी ४ तथा तीर्थकरके बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सर्व शुक्ल लेश्यावालोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं । अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सर्व शुक्ल लेश्यावालोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। दो वेदनीय, हास्य-रति, अरति-शोक, स्थिरादि तीन युगलका मनोयोगियों के समान भंग जानना चाहिए। स्त्रीवेद, नपुंसकवेद, ५ संस्थान, ५ संहनन, अप्रशस्तविहायोगति, दुर्भग, दुस्वर, अनादेय, नीच गोत्रका स्त्यानगृद्धिके समान भंग है । पुरुष वेद, प्रशस्त विहायोगति, सुभग, सुस्वर, आदेय तथा उच्चगोत्रका असाताके समान भंग है । दो आयु, दो गति, आहारकद्विकका अवधिज्ञानके समान भंग है । मनुष्य नति ४ के बन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सर्व शुक्ल लेश्यावालोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। अबन्धक सर्व जीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सर्व शुक्ल लेश्यावालोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं।
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