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पयडिबंधाहियारो
१८१ वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० बंधगा सव्वजी० केव० १ चदुभागो देसूणो । सव्यकोघेसु केव० ? अणंतभागा। अबंधगा सबजी० केव० ? अणंतभागो। सव्वकोधेसु केव० ? अणंतभागो। सादबंधगा सव्व जी० केव० ? संखेजदिभागो। सत्रकोधेसु केव० ? संखेचदिभागो । अबंधगा सव्वजी० केव० ? संखेजदिभागो। सव्वकोधेसु केव० ? संखेजा भागा । असादबंधगा सव्वजी० केव० ? संखेजदिभागो। सव्वकोधेसु केव० ? संखेजा भागा । अबंधगा सयजी० केव० ? संखेजदिभागो। सव्यकोधेसु केव० ? संखेञ्जदिभागो । दोण्णं वेदणीयाणं बंधगा सव्वजी० केव० ? चदुभागो देसूणो । अबंधगा णत्थि । एवं जस० अजस० दोगोदं च । इथि० पुरिस० पत्त गेण सादभंगो । णवंस. असादभंगो । साधारणेण तिणिवेदाणं बंधगा सव्वजी० केव० ? चदुभागा देसूणा । सव्वकोधेसु केव० ? अणंतभागा। अबंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो। सव्वकोधेसु केव०? अणंतभागो । एवं हस्सरदि-दोयुगलं पंचजादि-छस्संठा-तसथावरादि-अट्ठयुगल०। तिण्णिआयु-बंधगा सव्वजी० केव० ? अणंतभागो । सव्वकोधेसु केव० ? अणंतभागो। अबंधगा सव्वजी० केव० ? चदुभागो देसूणो । सव्वकोधेसु केव० ? अणंतभागो (गा)। एवं दोगदि-दोसरीर-दोअंगो०-दोआणु० । तित्थय-तिरिक्खाउ० सादभंगो । चदुण्णं
मिथ्यात्व, १२ कषाय, भय, जुगुप्सा, तैजस कार्मण , वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माणके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? कुछ कम चार भाग हैं । सर्वक्रोधियोंके कितने भाग हैं ? अनन्त बहुभाग हैं । अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं ? सर्वक्रोधियों के कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सातावेदनीयक बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं? संख्यातवें भाग हैं। सर्व क्रोधियोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं । अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। सर्वक्रोधियोंके कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं। असातावेदनीयके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग है। सर्व क्रोधियों के कितने भाग हैं ? संख्यात बहुभाग हैं । अबन्धक सर्वजीवों के कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं । सर्वक्रोधियों के कितने भाग हैं ? संख्यातवें भाग हैं। दोनों वेदनीयोंके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? कुछ कम चार भाग हैं ; अबन्धक नहीं हैं। यशःकीर्ति, अयशकीर्ति, दो गोत्रोंका इसी प्रकार भंग है । स्त्रीवेद, पुरुषवेदके प्रत्येककी अपेक्षा साताके समान भंग जानना चाहिए । नपुंसकवेदका असाताके समान भंग है। सामान्यसे तीन वेदोंके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? कुछ कम चार भाग हैं। सर्वक्रोधियों के कितने भाग हैं। ? अनन्त बहुभाग हैं । अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सर्वक्रोधियोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग है। हास्य-रति, अरति-शोकमें ५ जाति, ६ संस्थान, बस-स्थावरादि आठ युगलमें वेदोंके समान भंग है। तीन आयुके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तव भाग हैं । सर्वक्रोधियों के कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? कुछ कम चार भाग हैं । सम्पूर्ण क्रोधियोंके कितने भाग हैं ? अनन्त भाग हैं। विशेषयहाँ अनन्त बहुभाग पाठ उचित प्रतीत होता है। दो गति, २ शरीर, दो अंगोपांग, दो आनुपूर्वी में इसी प्रकार जानना चाहिए। तीर्थकर तथा तिथंचायुका साताके समान भंग हैं। चारों
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