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महाबंधे यपज्जत्त० केव० ? असंखेजदिभागो । अबंधगा सव्व० केव० ? अणंतभा० । सव्वपंचिंदियपञ्जत्ता० केत्र ? असंखेजा भागा । साधारणेण सव्व-परियत्तीणं वेदणीयभंगो । णवरि चदुआयु-छस्संघ० सादभंगो । अंगो० विहाय० सरणामाणं सादभंगो । आदावुजो० सादभंगो।
१५८. तस० पंचिंदियभंगो। तसपञ्जत्तेसु-धुविगाणं थीणगिद्धि-दण्डओ दोवेदणी० सत्तणोक० चदुआ० पंचिंदिय-पजतभंगो। सादभंगो तिण्णिगदि-चदुजादिवेगुब्धियस०-पंचसंठा० दोअंगो० छस्संघ० तिण्णि-आणु ० पर०-उस्सा० आदावुजोवदोविहाय० तस४ थिरादिलक० दुस्सर-उच्चागोदाणं च । असादभंगो तिरिक्खगदिएइंदियजा० ओरालि० हुंडसं० तिरिक्वाणु० थावरादि०४ अथिरादिपंच-णीचागोदाणं च । साधारणेण दोवेदणीयभंगो। णवरि अंगो० संघड विहाय० सरणामाणं सादभंगो। आहारदुगं तित्थयरं बंधगा सव्व० केव० ? अणंतभागो। सव्वतस०-पजत्ता० केव० ? असंखेजदिभा० । अबंधगा सव्व० केव० ? अणंतभागो। सब्बतसपञ्जता. केव० ? असंखेजभा० ।
१५६. पंचमण० तिण्णि-वचि०-पंचणा० णवदंस० मिच्छ० सोलसक० भयदु०
विशेष-यहाँ तीर्थंकर आदिके बन्धक सर्व जीवोंके 'अनन्तवें भाग' पाठ सम्यक् प्रतीत होता है।
सम्पूर्ण पंचेन्द्रिय पर्याप्तकों के कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं । अवन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं। अनन्तवें भाग हैं। सर्वपंचेन्द्रिय पर्याप्तकोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं। सामान्यसे सम्पूर्ण परिवर्तमान प्रकृतियोंका वेदनीयके समान भंग है। विशेष-४ आयु, ६ संहननका साताके समान भंग है। अंगोपांग, विहायोगति तथा स्वरनामकी प्रकृतियोंका साताके समान भंग है । आतप, उद्योतका साताके समान भंग है ।
१५८. त्रसोंमें-पंचेन्द्रिय के समान भंग हैं। वस-पर्याप्तकोंमें-ध्रुव प्रकृतिका स्त्यानगृद्धि, दण्डक, दो वेदनीय, ७ नोकषाय, ४ आयुका पंचेन्द्रिय-पर्याप्तकों के समान भंग है। तीन गति, ४ जाति, वैक्रियिक शरीर, ५ संस्थान, २ अंगोपांग, ६ संहनन, ३ आनुपूर्वी, परघात, उच्छ्वास, आतप, उद्योत, २ विहायोगति, त्रस ४, स्थिरादिषट्क, दुस्वर तथा उच्चगोत्रका सातावेदनीयके समान भंग है । तिर्यंचगति, एकेन्द्रियजाति, औदारिक शरीर, हुंडकसंस्थान, तिर्यंचानुपूर्वी, स्थावरादि ४, अस्थिरा दि ५ तथा नीचगोत्रका असाताके समान भंग जानना चाहिए । सामान्यसे दोनों वेदनीयके समान भंग है। विशेष, अंगोपांग, संहनन, विहायोगति तथा स्वर नामकी प्रकृतियोंका साताके समान भंग है। आहारकद्विक, तीर्थकरके बन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं। सम्पूर्ण वस-पर्याप्तकोंके कितने भाग हैं ? असंख्यातवें भाग हैं। अबन्धक सर्वजीवोंके कितने भाग हैं ? अनन्तवें भाग हैं । सम्पूर्ण त्रस-पर्याप्तकोंके कितने भाग हैं ? असंख्यात बहुभाग हैं।
१५२. पाँच मनोयोग, ३ वचनयोगमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६
१. जोगाणवादेण पंचमणजोगि-पंचवचिजोगि-वेउब्वियकायजोगि-वेउत्रियमिस्सकायजोगि-आहारकायजोगि-आहारमिस्सकायजोगी सव्वजीवाणं केवडिओ भागो ? अणंतो भागो ॥-खु० बं,३५,३६ ।
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