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महाबंधे चदुआयु० वेउव्वियछक्क० मणुसगदितिगं च तिरिक्खोघं । सेसाणं जह० एग० स०, उक्क० अंतो०।
५३. आहारगे-पंचणा० छदसणा० सादासाद० चदुसंज० सत्तणोक० पंचिंदि० तेजाक० समचतु० वण्ण०४ अगु०४ पसत्थवि० तस०४ थिरादि दोण्णियुग० सुभगसुस्स० आदे० णिमि० तित्थय०-पंचत० जह० एग०, उक्क० अंतो० । णवरि गिद्दापचलाणं जहण्णु० अंतो० । तिण्णि आयु० आहारदुगं जह० अंतो०, उक्क० अंगुलस्स असंखे । एवं चेव वेउव्वियछक्क-मणुसगदितिगं च । णवरि जह० एग० । ओरालिय० ओरालि०-अंगो० वज्जरिस० जह० एग०, उक्क० तिण्णि पलिदो० सादि० । सेसाणं ओघं । अणाहार० कम्मइगभंगो।
एवं अंतरं समत्तं ।
अन्तर नहीं है । चार आयु, वैक्रियिकषट्क, मनुष्यगतित्रिकका तियचोंके ओघ समान जानना चाहिए। शेष प्रकृतियोका जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूत अन्तर है।
५३. आहारकमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, साता-असातावेदनीय, संज्वलन ४, ७ नोकपाय, पंचेन्द्रियजाति, तैजस- कार्मण-शरीर, समचतुर संस्थान, वर्ण ४, अगुमलघु ४, प्रशस्त विहायोगति, बस ४, स्थिरादि दो युगल, सुभग, सुस्वर, आदेय, निर्माण, तीर्थकर तथा पंच अन्तरायोंका जघन्य एक समय तथा उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है। विशेप, निद्रा-प्रचलाका जघन्य उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है । ३ आयु, आहारकद्विकका जघन्य अन्तर्मुहूर्त है । उत्कृष्ट अंगुलके असंख्यातवें भाग है। इसी प्रकार वैक्रियिकपटक, मनुष्यगतित्रिकका जानना चाहिए। विशेष, इनका जघन्य एक समय प्रमाण है। औदारिक शरीर, औदारिक अंगोपांग, वज्रवृषभसंहननका अन्तर जघन्य एक समय, उत्कृष्ट साधिक तीन पल्य है। शेष प्रकृतियांका ओघवत् है। अनाहारकोंमें- कार्मण काययोगके समान जानना चाहिए ।
इस प्रकार एक जीवकी अपेक्षा अन्तर समाप्त हुआ।
१. कम्मइयकायजोगीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? ||७७।। जहण्णेण खुद्दाभवग्गणं तिसमऊणं ॥७८॥ उपकस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो असंखेज्जासंखेज्जाओ ओसप्पिणि-उस्सप्पिणीओ ।।७९।। -खुद्दाबंध खंड २, पु० ७, पृ० २१२।
२. “आहाराणुवादेण सासणसम्मादिट्ठि-सम्मामिच्छादिट्ठीणमंतरं केवचिरं कालादो होदि ? एगजीवं पडुच्च जहण्णण पलिदोवमस्स असंखेज्जदिभागो, अंतोमहत्तं । उक्कस्सेण अंगलस्म असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जासखेज्जाओ ओस प्पिणि-उस्स प्पिणीओ। असंजदसम्मादिट्रिप्पहाडि जाव अप्पमत्तसंजदाणमंतर केवचिरं कालादो होदि ? एगजीवं पडुच्च जहण्णेण अंतोमुहत्तं, उक्कस्सेण अंगुलस्स असंखेज्जदिभागो, असंखेज्जाओ ओसप्पिणिउस्सप्पिणीओ ॥"- पु. ५, पृ. १७३-७५, सूत्र ३८४-६०
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