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________________ ६४ महाबंधे एग० । उक्क० अंतो० । दो आयु ओघं । णवरि तेज० वाउका० मणुसगदि०४ वजरि० [ वजं ] तिरिक्खगदितिगं धुवभंगो। २१. पंचमण. पंचवचि०-सव्वपगदीणं बंधे (बंध )कालो जह० एग० । उक्क० अंतो० । एवं वेउविका० आहारका० । का [य] जोगि०-पंचणा० णवदंसणमिच्छत्त०सोलसक०भयदु० ओरालिय-तेजाकं० वण्ण०४ अगुरु० उप० णिमि० पंचंतरा० जह० एग। उक्क० अणंतकालं असंखे०पोग्गलपरियÉ । तिरिक्खगदितिगं ओघं। सेसाणं सादादीणं जह० एग०। उक्क. अंतो० । ओरालियकायजोगीसुपंचणा०णवदंसण मिच्छत्त०सोलसक० भयदुगुं० ओरालिय - तेजाक० वण्ण०४ अगु० उप० णिमि० पंचतरा० जह० एग०। उक्क० बावीस-बस्स-सहस्साणि देसू० । तिरिक्खगदि-तिगं जह० एग० उक० तिण्णि-वस्स-सहस्साणि देसू० । सेसाणं सादादीणं जह० एग० । उक्क० अंतो० । ओरालियमिस्स०-पंचणा०णवदंसण मिच्छत्त सोलसक०भयदुगुं० ओरालिय-तेजाक० वण्ण० ४ अगु० उप० णिमिणं पंचतरा जह० जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तर्मुहूर्त है। मनुष्यायु तथा तिर्यस्नायुका ओघवत् जानना चाहिए। इतना विशेष है कि तेजकाय और वायुकायमें, मनुष्यगति, मनुष्यायु, मनुष्यानुपूर्वी तथा उच्चगोत्र रूप चतुष्क तथा वज्रषभनाराच संहननको (छोड़कर ) तिर्यश्चगति त्रिकका ध्रुवभंग है। २१. पाँच मनोयोग, पाँच वचनयोगमें-सर्व प्रकृतियोंका बन्धकाल जघन्यसे एक समय, उत्कृष्ट से अन्तर्मुहूर्त है । ऐसा ही वैक्रियिक काययोग तथा आहारक काययोगमें है। काययोगमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक-तैजसकार्मणः शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तरायका जघन्य बन्धकाल एक समय, उत्कष्ट अनन्तकाल असंख्यात पुद्गलपरावर्तन है। तिर्यञ्चगतित्रिकका ओघवत है। शेष सातादि प्रकृतियोंका जघन्य एक समय, उत्कृष्ट अन्तमुहूर्त है । औदारिक काययोगियोंमें-५ ज्ञानावरण, ९ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कषाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक-तैजसकार्मण शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण तथा ५ अन्तरायोंका जघन्य बन्धकाल एक समय, उत्कृष्ट कुछ कम २२ हजार वर्ष है। विशेषार्थ-एक तिर्यञ्च, मनुष्य या देव २२ हजार वर्षकी आयुवाले एकेन्द्रियोंमें उत्पन्न हुआ और जघन्य अन्तमुहूर्त के पश्चात् उसने पर्याप्तियोंको पूर्ण किया। इससे अपर्याप्त दशामें औदारिकमिश्रके कालको घटाकर औदारिक काययोगका काल कुछ कम २२ हजार वर्ष रहा। अथवा देवका यहाँ एकेन्द्रियों में उत्पाद नहीं कहना चाहिए, कारण, उसके जघन्य अपर्याप्त काल नहीं होगा। (ध० टी०,का०,पृ० ४११) तिर्यश्चगति-त्रिकका बन्धकाल जघन्यसे एक समय, उत्कृष्ट से तीन हजार वर्षसे कुछ कम है । शेष साता आदि प्रकृतियोंका जघन्यसे एक समय, उत्कृष्ट से अन्तमुहूर्त बन्धकाल है। औदारिकमिश्रकाययोगमें-५ ज्ञानावरण, ६ दर्शनावरण, मिथ्यात्व, १६ कपाय, भय, जुगुप्सा, औदारिक-तैजस-कार्मण शरीर, वर्ण ४, अगुरुलघु, उपघात, निर्माण, ५ अन्तरायका जघन्य बन्धकाल तीन समय कम क्षुद्रभव प्रमाण है, उत्कृष्ट बन्धकाल अन्तर्मुहूर्त है । Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001388
Book TitleMahabandho Part 1
Original Sutra AuthorBhutbali
AuthorSumeruchand Diwakar Shastri
PublisherBharatiya Gyanpith
Publication Year1998
Total Pages520
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Karma
File Size12 MB
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