SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 71
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org स. अपभ्रंश : नाम-विभक्ति प्रकरण अपभ्रंश भाषा में प्राकृत भाषा के प्रचलित रूपों का सर्वथा लोप तो नहीं हुआ परंतु पदरचना सम्बंधी प्राय: पर्याप्त वैविध्य और अनेक परिवर्तन देखने को मिलते हैं । यह वैविध्य अपभ्रंश भाषा का जन-भाषा के रूप में व्यापक स्तर पर प्रचलित होने का द्योतक है । इसी वैविध्य के कारण अपभ्रंश भाषा को प्राकृत भाषा से अलग दर्जा मिला है । यहाँ पर इस भाषा के केवल नाम - प्रकरण का ब्यौरा ही दिया जा रहा है । पद - रचना सम्बंधी अन्य प्रकरण सर्वनाम, क्रिया - पद, कृदन्त आदि आगे प्राकृत एवं पालि के साथ ही दिये गये हैं । (i) पुंलिंग 'अ'कारान्त शब्द (देव) 4 v ए.व. देवा, देव, देवा, देवहो देव, देवा देवेणं, देवणं, देविण देवें, देव, देवे, देवि, देवि, देवइँ, देवइ देवहे, देवहो, देवहु देव - हाँतउ देवस्सु, देवासु, देवसु, देव देवहो, देवहों, देवहु, देवहुँ, देवह देवे, देवि, देवें, देवि, देवहि, देवर्हि, देवइ देव, देवा, देवो لقي الفي द्वि. देवु, देवें, पं. देवहे, ष. सं. देवु ब.व. देव, देवा देव, देवा, देवे देवहिं देवहि, देवहिँ, देवेहि, देवेहि, देवेाहिँ, देविहिँ देवहुँ देवहुँ देवहं देवहुँ, देवहुँ, देवहँ देवाहँ देवाणं, देव देवहिं देवहिँ, देविहिँ, देवेहि, देवेहिं देव देवा, देवहो, देवहीँ ५४ प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy