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________________ १. ध्वनि - परिवर्तन प्राकृत भाषाओं में ध्वनि - सम्बन्धी परिवर्तन उच्चारण में प्राय: सरलता लाने और कम प्रयत्न करने की कोशिश के कारण हुए हैं । मनुष्य का स्वभाव है कि यदि कोई कार्य कम परिश्रम से हो जाय तो उसके लिए अधिक परिश्रम करने की क्या आवश्यकता है । इसी परिणाम स्वरूप ये परिवर्तन हुए हैं । क. स्वर-विकार १. ( अ ) प्राकृत भाषाओं में विसर्ग ( : ) का प्रयोग नहीं होता है । 'अ' कारान्त शब्द के बाद विसर्ग आता है तब 'अ' का वैकल्पिक 'ओ' हो जाता है : रामो ( रामः ), तओ ( ततः ) । ( ब ) ॠ, ऐ और औ के परिवर्तन इस प्रकार होते हैं : ऋ = अ : तण (तृण ), वत्त ( वृत्त), दढ (दृढ ), ( वृषभ ), कय ( कृत ) ( स ) ऐ (द) औ Jain Education International इ : मिग ( मृग ), इसि (ऋषि), गिद्ध (गृद्ध ) उ : मुणाल (मृणाल ), पुच्छ (पृच्छ ), वुड्ढ (वृद्ध) ए: गेह (गृह), वेंट ( वृन्त ), गेज्झइ ( गृह्यते ) रि : रिद्धि (ऋद्धि), रिण (ऋण), रिसि (ऋषि) ए: अइ = वसभ वेर (वैर), नेमित्तिअ ( नैमित्तिक), एरावण ( ऐरावण), देवसिय ( दैवसिक ) वइर (वैर), दइव ( दैव), भइरव (भैरव), कइलास ( कैलाश ) ओ : कोरव ( कौरव), गोरव ( गौरव), पोराणिअ (पौराणिक), सोजण्ण ( सौजन्य ) अउ : कउरव ( कौरव), गउरव (गौरव), पडर ( पौर) For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001385
Book TitlePrakrit Bhasha ka Tulnatmak Vyakaran
Original Sutra AuthorN/A
AuthorK R Chandra
PublisherPrakrit Text Society Ahmedabad
Publication Year2001
Total Pages144
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari & Grammar
File Size5 MB
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