________________
पर उनका प्रायः अनुस्वार हो जाता है, जैसे-रंज(रञ्ज), किंकर (किङ्कर) परंतु प्राचीन काल की प्राकृतों में प्रायः ऐसा नहीं होता था और पालि भाषा की तरह संयुक्त रूपमें सजातीय व्यंजन के साथ ङ् और ञ् का प्रयोग होता था। पालि भाषा में ञ् और ङ् का सजातीय व्यंजन के साथ और ञ् का स्वर के साथ एवं द्वित्व रूप में प्रयोग होता है ।।
वर्णमाला का अन्य वर्गीकरण अघोष : क्, ख्, च्, छ्, ट्, ठ्, त्, थ्, प्, फ् घोष : ग्, घ्, ज, झ्, ड्, ढ्, द्, ध्, ब्, भ् अल्पप्राण : क्, ग्, च्, ज्, ट्, ड्, त्, द्, प्, ब् महाप्राण : ख्, घ, छ, झ्, ठ, ढ्, थ्, ध्, फ्, भ्
स्वर, अन्तस्थ और नासिक्य व्यंजन घोष ध्वनियाँ हैं । नासिक्य व्यंजन और अन्तस्थ अल्पप्राण हैं । स और ह महाप्राण ध्वनियाँ हैं ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org