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प्राकृत भाषाओं का तुलनात्मक व्याकरण
ब. परसर्ग अपभ्रंश भाषा अयौगिक बनने लगी अतः उसमें संबंध तत्त्व नाम शब्द से अलग होकर परसर्ग के रूप में विकसित होने लगा । अपभ्रंश के कुछ मुख्य परसर्ग इस प्रकार हैं :- केरउ, केरय, तणइ, तणउ, अणउ, णउ, नउ (सम्बन्धार्थे), - केहिँ, तेहिँ, रेसिँ, रेहिँ, कारणे, कज्जे (कृते-के लिए) -- सिउ, सुं, होतउ, ठिउ, थिउ (में से)
समाणु (समकम्), लग्गेवि (आरभ्य), लगि (लग्नम्), भणेवि (इति कृत्वा), माहिं (मध्ये), बिच्चि (बीच में), मत्थए (उपरि), इत्यादि ।
स. देश्य शब्द प्राकृत साहित्य में देश्य, देशी अथवा देशज कहलाने वाले शब्दों की विपुलता है। उनकी मात्रा क्रमशः बढ़ती गयी है । पालि भाषा में कचित् ही देश्य शब्द हैं जबकि अपभ्रंश भाषा में उनकी संख्या बहुत बढ़ गयी हैं । इन देश्य शब्दों की परंपरा आधुनिक भारतीय आर्य भाषाओं में भी चालू रही है ।
देशीनाममाला, प्राकृत कोषों, प्राकृत व्याकरणों एवं प्राकृत साहित्य में ऐसे अनेक देश्य शब्द देखने को मिलेंगे जिन्हें सही अर्थ में देश्य नहीं कहा जा सकता । इसका कारण यह है कि उनमें अल्प अथवा दूरगामी ध्वनिगत एवं अर्थगत परिवर्तन आ जाने के कारण अथवा उनका आधार प्राचीन भारतीय आर्य भाषा के साहित्य में न मिलने के कारण वे पहिचाने नहीं जा सके और देश्य ही कहलाने लगे । अब उनका सम्बन्ध प्राचीन भारतीय आर्य भाषा के साथ स्थापित होता जा रहा है और ऐसी अवस्था में उन्हें तद्भव ही कहा जा सकता है । कुछ ऐसे शब्द भी हैं जिनका सम्बन्ध द्राविडी अथवा अन्य विदेशी भाषाओं के साथ पाया जाता है । इनके अलावा जो शब्द मिलते हैं उन्हें शुद्ध देश्य शब्द कहा जा सकता है । नीचे विविध तरह के कुछ शब्द दिये जा रहे हैं ।
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