________________
८३
पद-रचना : क्रिया-प्रकरण (ब) आत्मनेपद के प्रत्यय (अ) - इस्सं
(अ) - इस्साम्हसे (अ) - इस्ससे
(अ) - इस्सव्हे (अ) - इस्सथ
(अ) -इस्सिसु
(ब) प्राकृत पश्चात् कालीन प्राकृत साहित्य में इसका प्रयोग वर्तमान कृदन्त युक्त रूपों द्वारा किया गया हैं : न्त, माण भणंतो, भणंती, भणंता, भणमाणो, भणमाणी, होतो, होमाणो, करेंतो, इत्यादि ।
जइ रावणो सीयं न हरंतो तो तस्स वहो न होन्तो ।
__(vii) पूर्ण वर्तमान एवं पूर्णभूत प्राकृत भाषाओं में कर्मणि भूतकृदन्त के साथ 'अस्' धातु के वर्तमान काल के रूप लगाकर पूर्ण वर्तमान एवं 'अस्' के भूत काल का रूप 'आसि' लगाकर पूर्ण भूत काल प्रकट किया जाता है ।
(प्राकृत) पूर्ण वर्तमान (पालि) पूर्ण वर्तमान (अहं) गद म्हि, उत्तिण्णो मि, पब्बजितो म्हि, स्मि, म्मि
वञ्चितो म्मि पूर्ण भूत
ठितो सि अहं उववसिदो आसि
सीतिभूता'म्ह .. सो गओ आसि
आगता'त्थ देवी गदा आसि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org