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________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र दिया। उसने जलधि की जलराशि को झकझोर कर फेनमय कर डाला । भगवान् पार्श्वनाथ का वह यशोहंस चिरकाल तक सुशोभित होता रहे । [ ३ ] पुण्यानां विपिणिस्तमोदिनमणिः कामेभकुम्भे सृणिः, मोक्षे निस्सरणिः सूरद्र करिणी ज्योतिः प्रकाशारणिः । दाने देवमणिनतोत्तमजनश्रेणिः कृपा - सारिणिः, विश्वानन्दसुधाधुणिर्भवभिदे श्रीपार्श्व-चिन्तामणिः ।। चिन्तामणि पार्श्वनाथ, समस्त सुखों के केन्द्रस्थान हैं। संसार के अन्धकार को नष्ट करने के लिए सूर्य से भी अधिक प्रकाशमान हैं। कामरूपो मदोद्धत गज को वश में करने के लिए अंकुश के समान हैं। मोक्षरूपी प्रासाद पर चढ़ने के लिए सोपानरूप हैं। कल्पवृक्ष के समान भक्तों की अभिलाषाओं को पूर्ण करनेवाले हैं। कर्म से आवृत ज्ञान-रूप ज्योति को प्रकाशित करने में अरणि के तुल्य हैं । दान देने में इन्द्र से भी अधिक उदार हैं। अपने भक्त-जनों पर कृपा रखने के लिए सदा तत्पर हैं। विश्व में आनन्दरूप अमृत की तरंग के समान हैं। । भगवान् चिन्तामणि पार्श्वनाथ के स्वरूप का ध्यान करने से और नाम का जाप करने से, संसार के समस्त संकटों का अन्त हो जाता है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001381
Book TitleKalyan Mandir
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1980
Total Pages101
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Stotra, P000, & P010
File Size3 MB
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