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कल्याण-मन्दिर-स्तोत्र
कल्याण-मन्दिरमुदारमवद्य-भेदि,
भीताभयप्रवमनिन्दितमङ घ्रि-पद्मम् । संसार-सागर-निमज्जदशेष-जन्तु
पोतायमानमभिनम्य जिनेश्वरस्य । कल्याण के मन्दिर-धाम, उदार-महान्, पाप के नाश करने वाले, संसारिक दुःखों के भय से आकूल प्राणियों को अभय प्रदान करने वाले, अनिन्दितप्रशंसनीय, संसाररूपी सागर में डूबते हुए सब जीवों को जहाज के सामान आधारभूत, श्रीजिनेश्वरदेव के चरण-कमलों को भलीभाँति प्रणाम करके
[ २ ]
यस्य स्वयं सुरगुरुर् गरिमाम्बुराशेः,
स्तोत्रं सुविस्तृत-मतिर् न विभुर्विधातुम् । तीर्थेश्वरस्य कमठ-स्मय-धूमकेतोस् --
तस्याहमेष किल संस्तवनं करिष्ये ॥
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