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कल्याण-मन्दिर स्तोत्र
जिह सब देख किये वश वाम । ते छिन में जीत्यो सो काम ।।
ज्यों जल करे अगनि-कुल हान । बड़वानल पीवे सो पान ।।
: १२ :
तुम अनन्त गरवा गुण लिये। क्योंकर भक्ति धरौं निज हिये ।।
ह्र लघु रूप तिरहिं संसार । यह प्रभु महिमा अगम अपार ।। : १३ :
क्रोध निवार कियो मन शान्त । कर्म-सुभट जीते किहिं भान्त ॥
यह पटुतर देखहु संसार । नील बिरछ ज्यों दहे तुसार ॥
:१४:
मुनिजन हिये कमल निज टोहि । सिद्ध-रूप-सम ध्यावहिं तोहि ।।
कमल करणिका बिन नहिं और। कमल-बीज उपजन की ठौर ॥
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