________________
कल्याण-मन्दिर स्तोत्र
भक्त जनता के नेत्ररूपी कुमुदों को विकसित करनेवाले विमल चन्द्र ! वे अत्यन्त रमणीय स्वर्गसम्पदाओं को भोग कर, अन्त में कर्म- मल से रहित हो जाते हैं, और शीघ्र ही मोक्ष प्राप्त कर लेते हैं ।
५६
टिप्पणी
लोग कहते हैं, भगवत्स्तुति से क्या होना-जाना है ? वर्षों के वर्ष गुजर जाते हैं, कुछ भी तो लाभ नहीं होता । परन्तु ! उन्हें समझना चाहिए कि भगवत्स्तुति के लिए भक्त को कैसा होना चाहिए ? योग्य अधिकारी के बिना साधना कैसे सफल हो सकती है ? आचार्यश्री ने कल्याण- मन्दिर का उपसंहार करते हुए इसी वस्तुस्थिति पर प्रकाश डाला है । प्रथम श्लोक में भव्य के विशेषण जरा ध्यान से पढ़ने चाहिएं। एक-एक विशेषण में भक्ति का क्षीरसागर लहरें ले रहा है, भगवत्प्रेम का नाद गूँज रहा है । भगवान् की स्तुति करनी हो, तो नीरस एवं शुष्क हृदय से न कीजिए। जब तक तन्मयता नहीं होती है, तब तक स्तुति करने का आनन्द नहीं प्राप्त होता । भगवच्चरणों में बुद्धि को स्थिर कीजिए, उसे इधर-उधर बिल्कुल मत भटकने दीजिए । और जब स्तुति करें, तो हृदय प्रेम से छलकता रहना चाहिए। अधिक क्या, शरीर का अंग-अंग भगवत्प्रेम से पुलकित एवं रोमाञ्चित हो जाना चाहिए। जब यह दशा होगी, तभी भगवत्स्तुति का आनन्द मिलेगा, आत्मा का कल्याण होगा ।
Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org