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________________ कल्याण-मन्दिर स्तोत्र काण्ड का ही मोह रखनेवाले भक्तों को इससे कुछ शिक्षा ग्रहण करनी चाहिए। ___ संसार में यदि कोई साधन के अभाव में दुःख पाता है, तो उसकी विवशता पर दया आ सकती है। परन्तु जो साधन पा कर भी उसका उचित उपयोग न करने के कारण दुःख पाता है, तो वह अवश्य ही निन्दा का पात्र है। प्रभु के चरण-कमल विश्व का कल्याण करने वाले हैं, परन्तु दुःख है कि नादान साधक उनको पाकर भी सच्चे मन से ध्यान लगा कर उपासना नहीं कर पाता । अतएव नाना प्रकार के दुःख उठाता है। चिन्तामणि रत्नपा कर भी दरिद्रता? और वह भी अपनी भावना की दुर्बलता के कारण ? यह नष्ट हो जाना नहीं, तो और क्या है ? कुछ प्रतियों में 'वन्ध्योऽस्मि' के स्थान पर 'वध्योऽस्मि' पाठान्तर भी मिलता है। वध्योऽस्मि का अर्थ है कि रागादि शत्रुओं के द्वारा मैं वध्य हो रहा हूँ, मारा जा रहा हूँ। [ ४१ ] देवेन्द्र-वन्ध ! विदिताखिलवस्तु-सार ! संसार-तारक विभो भुवनाधिनाथ ! त्रायस्व देव करुणाहद ! मां पुनीहि सीदन्तमद्य भयद-व्यसनाम्बुराशेः ॥ हे प्रभो ! आप स्वर्गाधिपति इन्द्रों द्वारा वन्दनीय हैं, सब पदार्थों के रहस्य को जानने वाले हैं, संसार-सागर से पार उतारने वाले हैं, तीन लोक के नाथ हैं। हे करुणा Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001381
Book TitleKalyan Mandir
Original Sutra AuthorSiddhasen Divakarsuri
AuthorAmarmuni
PublisherSanmati Gyan Pith Agra
Publication Year1980
Total Pages101
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari, Worship, Stotra, P000, & P010
File Size3 MB
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