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कल्याण-मन्दिर स्तोत्र
[ २३ ] श्यामं गभीर-गिरमुज्ज्वलहेमरत्न
सिंहासनस्थमिह भव्य-शिखण्डिनस्त्वाम् । आलोकयन्ति रभसेन नदन्तमुच्चैश्–
चामीकराद्रि-शिरसीव नवाम्बुवाहम् ॥ हे प्रभो ! जब आप रत्नों से जड़े हुए उज्ज्वल स्वर्ण सिंहासन पर विराजमान होते हैं और गम्भीर वाणी के द्वारा धर्म-देशना करते हैं, तब भव्य प्राणी-रूप मयूर, श्याम वर्ण वाले आपको बहुत ही उत्सुक होकर इस प्रकार देखते हैं, मानो सुवर्णमय सुमेरुपर्वत के शिखर पर वर्षा-कालीन श्याम मेघ उमड़-घुमड़ रहा हो, जोरजोर से गरज रहा हो !
टिप्पणी
काले मेघों को धुमड़ते देखकर मोर बड़े ही आनन्दित होते हैं, इस साधारण लोक-घटना पर उपमा अलंकार का कितना सुन्दर चित्रण किया गया है ।
भगवान् पार्श्वनाथ का वर्ण श्याम था। अतः जब वे स्वर्ण-सिंहासन पर बैठकर अतीव गम्भीर वाणी में धर्मोपदेश करते थे, तब प्रभु के दर्शन पाकर भव्य-जीवों को अत्यन्त आनन्द होता था, उनका मन मयूर की तरह हर्षोन्मत्त होकर नाचने लगता था।
स्वर्णसिंहासन को स्वर्णमय मेरुपर्वत की, भगवान् को
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