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कल्याण-मन्दिर स्तोत्र
टिप्पणी
प्रस्तुत श्लोक में आये 'सुमन' शब्द के दो अर्थ हैं-एक फूल और दूसरा सु + मन--अच्छे मन वाला ज्ञानी भक्त । इस प्रकार 'बन्धन' शब्द के भी दो अर्थ हैं-एक फूलों का बन्धन वृन्त -डंठल और दूसरा ज्ञानावरण आदि कर्मों का बन्धन तथा विषय-कषाय आदि का बन्धन ।
आचार्यश्री ने उपर्युक्त 'सुमन' और 'बंधन' शब्द के दो अर्थों को लेकर बहुत ही सुन्दर पद्धति से श्लेष अलंकार का चमत्कार बताया है। आचार्य कहते हैं, आपके समवसरण मेंधर्म-देशना करने के मण्डप में जब देवता पुष्पों की वर्षा करते हैं, तब सब के सब फूलों के डंठल अधोमुख-नीचे की ओर भूमि पर होते हैं, और पंखुरियां ऊपर आकाश की ओर ऊर्ध्वमुख । सब लोग आश्चर्य करते हैं कि यह क्या चमत्कार है ? परन्तु इसमें आश्चर्य की क्या बात है ? जो सुमन, अर्थात् श्रद्धा-भक्ति से परिपूर्ण अच्छे मनवाला भक्त आपके पास आता है, उसके बन्धन नीचे चले जाते हैं, नष्ट हो जाते हैं। प्रभु का भक्त ज्ञानावरण आदि कर्मों के बन्धन में कैसे बँधा रह सकता है ? लोग प्रश्न कर सकते हैं कि-इस बात का फूलों से क्या सम्बन्ध ? जी हाँ, सम्बन्ध यह है कि फूल 'सुमन' कहलाता है और उसके डंठल 'बन्धन' । बन्धन का अर्थ है-बाँधने का साधन । फूल डंठल के द्वारा ही तो शाखा से बंधे रहते हैं । अतः डंठल भी बन्धन-पद-वाच्य है। अब आप समझ लीजिए । भगवान् के पास आकर सु-मनों के बन्धन नीचे
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