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चारित्र्य-सुवास राजा हो किन्तु तुम्हारे ही सहधर्मी निर्धन अवस्थामें रहते हैं और जैसे-तैसे निर्वाह करते हैं इसमें तुम्हें लज्जा नहीं आती ? हम मुनियोंको क्या ? हमको तो अल्प मूल्यवान और जीर्ण वस्त्र ही शोभते हैं।'
इस उपदेशका ऐसा प्रभाव हुआ कि कुमारपालने सहधर्मी-वत्सलताके पीछे प्रतिवर्ष एक करोड़ स्वर्णमुद्राएँ खर्चनेका निर्णय किया और इसप्रकार चौदह वर्षतक चौदह करोड़ स्वर्णमुद्राओंका सद्व्यय किया। इसी सहधर्मीवत्सलताके कारण कुमारपालको इतिहासमें अग्रिम स्थान प्राप्त हुआ।
उपदेशकी अपेक्षा आचरणका असर जल्दी होता है। *
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नौकरके साथ उदारताका व्यवहार
___ बंगालके कृष्णनगर नामक राज्यमें श्री ताराकान्त रॉय किसी ऊँचे पदपर नियुक्त थे । बहुत वर्षोंतक राजमहलके ही एक भागमें उनके निवासकी व्यवस्था थी।
एक समय सर्दीके दिनोंमें घर आते हुए उन्हें देर हो गयी। आकर देखा तो उनका एक पुराना और विश्वासपात्र नौकर उनके पलंगपर पैरोंकी ओर सो गया था। उसे उठाये बिना अपनी एक चादर जमीनपर बिछाकर वे सो गये।
प्रभातमें जल्दी राजाको कोई शुभ समाचार मिले थे अतः उसी आनन्दमें राजा स्वयं ही वे समाचार देनेके लिए श्री ताराकान्तके शयनखण्डमें गये और देखते ही आश्चर्यको प्राप्त हुए। उन्होंने श्री ताराकन्तसे पूछा कि 'क्यों, आप नीचे
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