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१७
चारित्र्य सुवास
कलाकार यदि आगे नहीं आयेंगे तो उनकी प्रसिद्धि कैसे होगी ? हमें ऐसे नये कलाकारोंको अवश्य प्रोत्साहन देना चाहिए ।'
अपने समाजके वयोवृद्ध कलाकार, डॉक्टर, वकील तथा अन्य व्यवसायी लोग इस प्रसंगसे शिक्षा लें तो युवान पीढ़ीको कितना लाभ हो ?
१४
दानाध्यक्षकी निष्पक्षता
अठारहवीं शताब्दीके उत्तरार्द्धमें, पेशवाओंके दरबार में मुख्य न्यायाधीश और दानाध्यक्ष के रूपमें रामशास्त्रीने बहुत वर्षों तक अपनी सेवाएँ प्रदान कीं। आदर्श और प्रामाणिक राज्यसेवककी दृष्टिसे उनकी कीर्ति सर्वत्र फैल गयी थी ।
एक समय किसी धर्मानुष्ठानके प्रसंग पर दान दिया जा रहा था, तब रामशास्त्री और नाना फडनवीस उपस्थित थे । दान लेनेवालोंमें बड़ी संख्या ब्राह्मणोंकी थी। रामशास्त्रीके सगे भाईकी भी उसमें बारी आई तब नाना फडनवीसने कहा, 'शास्त्रीजी, इसे बीस रुपये दो ।'
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'मेरा भाई कोई विशेष विद्वान नहीं है, इसलिए सभी ब्राह्मणोंकी भाँति इसे भी दो रुपये मिलने चाहिएँ ।' रामशास्त्रीने दृढ़तासे उत्तर दिया । 'मेरा भाई होनेके नाते उसे मैं स्वयं निजी रूपसे अपने पैसोंमेंसे कुछ भी दूँ, परन्तु राज्यके कोषमेंसे देनेका मुझे भाव भी नहीं है और अधिकार भी नहीं है।'
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