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चारित्र्य-सुवास अरब-व्यापारी मुंबईके जौहरीको हीरे दे। इस सम्बन्धका दस्तावेज भी तैयार हो गया।
समय पकने पर इन हीरोंका मूल्य बहुत अधिक बढ़ गया ! जो, अरब-व्यापारी दस्तावेजमें लिखे मूल्यके अनुसार हीरे दे तो उसे दिवाला निकालनेका समय आवे।
इस ओर दे जौहरी भोजनके लिए बैठनेकी तैयारीमें थे तभी उन्हें सौदे और साथ-साथ हीरोंके खूब बढ़ गये भावोंकी याद आ गयी। भोजन करना एक ओर छोड़ वे तो प्रस्थान कर गये सीधे अरब-व्यापारीके वहाँ ! अपने लेनदारको दुकान पर आया हुआ देखकर व्यापारी बेचारा घबरा गया। स्वाभाविकरूपसे ही उसने मान लिया कि समय हो गया है इसलिए जौहरी सौदेका निबटारा करनेके लिए ही आया होगा।
अरब-व्यापारीने कहा : 'अपने बीच हुए हीरोंके सौदेके सम्बन्धमें मैं बहुत चिन्तित हूँ। मेरा जो होना होगा सो होगा परन्तु आप विश्वास रखिएगा, मैं आपको आजके बाजार-भावसे अपनी सारी सम्पत्ति बेचकर भी सौदा चुका दूंगा।'
इतनेमें वात्सल्यपूर्ण करुणाभरी आवाज़ आयी, 'वाह भाई वाह ! मैं चिन्ता क्यों न करूँ ? तुम्हें सौदेकी चिन्ता हो तो मुझे क्यों न हो ? चिन्ताका मूल कारण यह छोटा-सा कागजका टुकड़ा है, इसे ही नष्ट कर दें तो अपनी दोनोंकी चिन्ता मिट जाय ।'
ऐसा कहकर जौहरीने सौदेका दस्तावेज फालतू कागज़की तरह फाड़ डाला, जिसमेंसे उन्हें ७०,००० रुपयोंका लाभ होनेवाला था ! तबसे अरब-जगतमें वह व्यापारी कहता कि
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