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________________ चारित्र्य-सुवास डरबन आ जाओ और अपनी पलीको जहाँ ले जाना हो वहाँ ले जाओ !' ऐसा क्या हुआ था ? हुआ यौं कि डॉक्टरने कस्तूरबासे कहा था कि जीवित रहना हो तो तुम्हें दवाके रूपमें मांसाहार करना ही पड़ेगा। कस्तूरबाने इस बातसे साफ इन्कार करके कह दिया था कि मरण हो तो भले, परन्तु मांसाहार तो नहीं किया जा सकता। इसी कारणसे डॉक्टरने तार करके गांधीजीको डरबन बुलाया। गांधीजी डरबन पहुँचे और डॉकटर-मित्रसे कह दिया, 'यह मरणको प्राप्त हो तो भले, परन्तु इसकी इच्छाके विरुद्ध मांसाहार नहीं दिया जा सकता !' 'तो तुम्हारा तत्त्वज्ञान मेरे घर नहीं चलेगा, यदि ऐसा ही है तो अपनी पत्नीको ले जाओ।' 'कब ?' 'इसी समय, क्योंकि मैं, डॉक्टर होते हुए भी रोगीकी मिथ्या हठ स्वीकारकर उसे अपने घरमें नहीं मरने दूंगा।' ___ गांधीजीने अपने पुत्रके सामने कस्तूरबासे पूछा और उन्होंने उत्तर दिया, 'तो मुझे शीघ्र यहाँसे ले जाओ । मनुष्यदेह वारंवार नहीं मिलती। तुम्हारी गोदमें भले मर जाऊँ परन्तु मुझसे यह देह अपवित्र नहीं होने दी जायेगी। वाह रे कस्तूरबा तुम्हारी दृढ़ता ! संस्कार इसीका नाम है ! वहाँसे निकलकर गांधीजी और कस्तूरबा ट्रान्सवालकी राजधानीसे इक्कीस मील दूर 'टॉल्सटोय फार्म' में आकर रहे थे। कस्तूरबा तो अभी बीमार ही थीं। गाँधीजीने कस्तूरबाके लिए अनेक उपचार चालू किये किन्तु वे सब व्यर्थ सिद्ध Jain Education International For Private & Personal Use Only ___www.jainelibrary.org
SR No.001380
Book TitleCharitrya Suvas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Siddhsen Jain
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size4 MB
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