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________________ चारित्र्य सुवास सन्तने कहा, 'भाई ! हम सन्त-लोग भी खूब प्रयत्नपूर्वक अपने प्रभुको बैठानेके लिए हमारा चित्त स्वच्छ करते हैं। भारी साधनासे स्वच्छ किये हुए चित्तको मलीन करनेके लिए कोई ऐसे रुपये-पैसे दे जाय तो हमें वह कैसे अच्छा लगेगा ? अब तू ही बता कि तुझे यह अपनी पैसोंकी थैली वापस ले लेनी चाहिए कि नहीं ?' ८८ निस्पृही महात्माकी तर्कपूर्ण युक्तिसे प्रभावित उस व्यापारीने सन्तकी आज्ञा मान ली। सन्तने उस सज्जनको धर्मलाभके लिए आशीर्वाद दिया और अपनी सम्पत्तिका दान, परमार्थके किसी योग्य कार्यके लिए करनेको कहा । ७७ अहिंसक सिंह ! सत्रहवीं शताब्दीकी यह बात है । उस समय मुलतानमें नवाब मुजफ्फरखानका शासन था। मंत्री उदयरामजी जैन उनके विशेष विश्वासपात्र राजदरबारी थे । एक बार नवाबको एक नवजात सिंहशिशु भेंटस्वरूप प्राप्त हुआ । नवाबने उदयरामजीसे कहा, 'सेठ साहब आप तो पूर्ण अहिंसक हैं, लीजिए इस सिंहके बच्चेको; यदि आप इसे भी अहिंसक बना दें तो आपको पूरा अहिंसक समझँ ।' उदयरामजी तो बच्चेको अपने घर ले आये और उसे दूधके साथ धीरे-धीरे अन्नाहारकी भी आदत डालने लगे। इसप्रकार समय बीतते सिंहका बच्चा तीन वर्षका हुआ तब उदयरामजीने उस बच्चेको नवाबको सौंप दिया और कहा, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.001380
Book TitleCharitrya Suvas
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBabulal Siddhsen Jain
PublisherShrimad Rajchandra Sadhna Kendra Koba
Publication Year2005
Total Pages106
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Discourse
File Size4 MB
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