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[ ८८ ]
मिलकर चलो
मिलकर सोचो, मिलकर बोलो, मिलकर चलो, एक ही पथ पर | घृणा द्वेष से दूर रहो नित, करो सर्व व्यवहार प्रीतिकर ||
जीवन
निर्भर, निर्भर तब तक रहता,
जब तक झर
झर बहता है । गति ही जीवन, जीवन ही गति, गति में जीवन रहता है ।
मानव तेरा भाग्य नहीं है, अन्य किसी के हाथों में । जो कुछ अच्छा - बुरा है वह सब, तेरे हाथों में ॥
रक्षित
मानव बनना, मानव बन जा, दानव बन जा, या पशु बन जा । श्रेष्ठ देव बन जा या बढ़कर, विश्व पूज्य श्री जिनवर बन जा ॥
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