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[ ७१ ] मांस खाना महापाप है
मांसाहार से रे, क्यों ना तुम शरमाते १ मांस भखन से पाप होत है, जन्म - जन्म दुःख पाते
आगम-वेद-कुरान-बाईबिल, सब के सब बतलाते मां. २ अपने यदि काँटा भी लगे तो, बेसुध हो चिल्लाते
लेकिन निर्दई बन पशुओं पे, खट-खट छुरा चलाते मां. ३ मूत्र विन्दु लगजावे कहीं तो, घिन से नाक चढ़ाते
किन्तु उसी के अण्डे छीं - छीं, कैसे चट कर जाते मां. ४ वन गुलाम रसना के, कैसा जोर जुल्म तुम ढाते
। अनगिन मुर्दै रखके पंट को, कबरिस्तान बनाते मां. ५ समको समझो अब तो समझो, अमर तुम्हें समझाते छोड़ो मांस का खाना यदि तुम, अपने को सुख चाहते मां
हिसार १९८७ चातुर्मास
HIMAIN
11IA
HUUN
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