________________
[ ६१ ] सत्य पुरुषों का संग करो तर्ज-कर पाखण्ड का त्याग रे तेरी अच्छी बनेगी कर संतन का संग रे, तेरी अच्छी बनेगी अच्छी बनेगी तेरी अच्छी बनेगी ॥ध्र. ।। १ संतन की महिमा है भारी, संत है निर्मल गंगारे ।।
मोह अंधेरा दूर हो सारा, करने से सत्संगरे । २ सत् संगति से पाप गली नीत, होती जाती है तंगरे ।
लाखो प्राणी सत्संगति से तिर गये कर भव भंगरे ।। ३ संतो की संगत से अपने करले अच्छे ढंगरे ।
सत्संगति कर यदि कर्मों से करना है अब जंगरे । __४ अमर हमेंशा सत्यसंगति का, रखना दिल उमंगरे ।
हिसार १९७७ चातुर्मास
०९०.00
Antawinly
O
-
A
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org