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[ ६० ] सिद्ध वन्दन
दयामय सिद्ध - प्रभूजी का हृदय में ध्यान लाते हो अमल आदर्श के द्वारा अलौकिक शान्तिपाते हो ॥ध्रु. जगत भूषण विगत - दूषण अखण्डानन्द अविनाशी,
जरा और मृत्यु के दुनियावी चक्कर में न आते हो। २ विकटतम क्रोधमद माया, तथा लोभादि रिपुजीते।
जलाकर रागद्वेषांकुर विशुद्धात्मा कहाते हो। ३ तुम्हारे रूपकी तुलना किसी से हो नहीं सकती।
चराचर विश्व के सब दृश्य तुम से मुंह छिपाते हैं । ४ पहुंच तन तक नहीं हो सकती मनकी और वाणी की,
लड़ाकर तर्क पर तर्के विबुध सब हार जाते हैं। ५ विलक्षण ज्ञान लोचन से तथा दृढ़ ध्यान के बल से ।
तुम्हारा रूप तो योगिन्द्र ही लखते लखाते है। जगत वन्दन जगत के नाथ जीवन भव्य जीवों के,
हठीले भक्त को भगवान अपना सा बनाते हैं। ७ तुम्ही हो मुक्ति के दाता, तुम्ही हो कर्म के धाता, दया दीनों पै कुछ करना अमर आशा लगाते
संगतिका से ॥ इति. ।।
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